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आठवें बलभद्र राजा रामचंद्रने को थी । इकईसर्वे तीर्थकर श्रीनमिनाथस्वामी मित्रघर कूटसे एक हजार मुनियों ।
। सहित मोक्ष पधारे फिर उसी कूटस एक अरब एक करोड़ पैतालीस लाख सात हजार नौ सौ बियालीस मुनि चासागर
और मोक्ष पधारे। इस कूट के दर्शन करनेसे एक करोड़ उपवासका फल और कर्माको निर्जरा होती है। इसको १२ यात्रा संघसहित राजा मेघदंतने की थी। श्रीपार्श्वनाथ भगवान् सुवर्णभव कूटसे मोक्ष पधारे फिर उसी कूटसे।
1 एक करोड़ चौरासी लाख पैंतालीस हजार सातसै बियालीस मुनि और मोक्ष पधारें। इस कूटके दर्शन करनेसे । । सोलह करोड़ उपवास करनेका फल और कोको निर्जरा होती है। इसकी यात्रा चतुर्विध संघसहित राजा, । सुप्रभावसेनने की थी। इस प्रकार बीसों कूटोंकी यात्राका अलग-अलग फल बतलाया। जो सब कूटोंकी यात्रा करते हैं वे जीव अवश्य मोक्ष प्राप्त करते हैं।
प्रश्न-अभव्यको यात्रा क्यों नहीं होती तथा यह बात कहाँ लिखी है ?
___समाधान-एफ पोहमीपुरका राजा यात्राके लिए गया था परन्तु मार्गमें ही रात्रिमें उसे स्वप्न हुआ।। । स्वप्नमें उसने अपने पुत्रको मरा देखा । तब बह राजा मोहके उवयसे बहुत दुःखी हुआ और पीछे घरको लौट
गया सो याह राजा अभव्य था इसलिये वह सम्मेदशिखर यात्रा न कर सका। इससे सिद्ध होता है कि अभव्यों# को यात्रा नहीं होती ऐसा नियम है।
प्रश्न- जो मनुष्य भव्य हो परन्तु उसके नरकाय अथवा तियंचायुका बन्ध हो गया हो तो उसको । यात्रा होती है या नहीं ?
समाधान-राजा श्रेणिकने श्रीमहावीरस्वामीसे पूछा था कि मेरे भाव श्रीसम्मेवशिक्षरजोको यात्रा करनेके हैं। तब भगवान्ने अपनी विध्यध्वनि द्वारा बतलाया कि तुमको यात्रा हो नहीं सकेगी, क्योंकि तुम्हारे । । पहले नरकायुका बन्ध हो चुका है। इसलिये तुम्हारे यात्राका संयोग नहीं है। फिर भी राजा श्रेणिक वहाँ ।
गया परन्तु यात्राके समय वश लाख व्यन्तरोंके स्वामी प्रभूत नामक यक्षने महाप्रचण्ड हवा चलाई जिसके । कारण राजा श्रेणिकको यात्रा हुई ही नहीं। महारानी चेलनीने भी श्रेणिकसे कहा कि हे स्वामिन् ! केवली
भगवान्के वचन कभी अप्रमाण नहीं हो सकते। रानीके वचन सुनकर राजा भेणिक भी वापिस आ गया। उसको " यात्रा हुई ही नहीं। अब भी अनेक संघ जाते हैं परन्तु जिनको दर्शन होनेका योग नहीं होता उनके अनेक विघ्न
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