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अर्थात् मार्कंडेय ऋषिने कहा है कि सूर्य अस्त होनेपर जल कधिरके समान है और अन्न खाना मांस-1
के समान है। फिर भला वह रात्रिमें भक्षण करने योग्य किस प्रकार हो सकता है । भारतमें भी लिखा हैचर्चासागर चत्वारो नरकद्वार प्रथम रात्रिभोजनम् । परस्त्रीगमनं चैव संधानानंतकायते ॥ [ १२१] ये रात्रौ सर्वदाहारं वजर्यति सुमेधसः। तेषां पक्षोपवासस्य मासकेन जायते ॥ । नोदकमपि पातव्यं रात्रावत्र युधिष्ठिर । तपस्विनो विशेषण गृहिणां च विवेकिनाम् ।।
अर्थात् नरफके चार द्वार हैं उनमें प्रथम रात्रिमें भोजन पान करना, दूसरा परस्त्रीगमन करना, तीसरा अचार, मुरब्बा आदि खाना और चौथा कंदमूल आदि अनंतकायका भक्षण करना । तथा जो बुद्धिमान रात्रिमें सब तरहके आहारके त्याग कर देते हैं उनके एक महीनेमें पन्द्रह उपवास हो जाते हैं या उन्हें पन्द्रह उपवासका फल प्राप्त हो जाता है। श्रीकृष्ण महाराज युधिष्ठिरसे कहते हैं कि हे युधिष्ठिर ! विचारशील गृहस्थों को रात्रिम जल भी नहीं पीना चाहिये। तथा तपस्वियोंको तो विशेषताके साथ त्याग कर देना चाहिये।
__ अरण्यकमें लिखा हैमृते स्वजनमात्रेपि सूतकं जायते किल । अस्तं गते दिवानाथे भोजनं क्रियते कथम् ॥ रक्ता भवंति तोयानि अन्नानि पिशितानि च । रात्रिभोजनशक्तस्य ग्रासेन मांसभक्षणम् ॥ नैवाइतिर्न च स्नानं न श्राद्धं देवतार्चनम् । दानं च विहितं रात्रौ भोजनं तु विशेषतः ॥
उदम्बरं भवेन्मांसं मांस तोयमवस्त्रकम् । चर्मवारि भवेन्मांसं मांसं च निशिभोजनम् ॥ । उलुककाकमार्जारगृखशंवरशकराः । अहिवृश्चिकंगोधाया जायते निशि भोजनात् ॥
अर्थात्-जिस प्रकार कुटुबमें किसी कुटंधोके मर आनेपर सूतक हो जाता है उसी प्रकार सूर्य अस्त होनेसे भी सूतक लग जाता है फिर भला सूतकमें भोजन किस प्रकार करना चाहिये । रात्रिमें जल तो रुधिर के समान हो जाता है, अन्न मासके समान हो जाता है, इसलिये रात्रिमें भी भोजनकी लंपटता रखनेवालोंके । के लिये एक ग्रास मात्र भोजन करना भी मांस भक्षणके समान है। रात्रिमें आहुति देना, स्नान करना, श्राद्ध