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पंचषट्सप्तहस्तांतमंतराले महीतले । सूरिपाठकसाना भक्तिपूर्वकमापिकाः।।
श्रीवट्टकरस्वामीने मूलाचारमें समाचाराधिकारमें भी यही बात लिखी हैपर्चासागर पंच छह सत्त हत्थे सूरी उवझायगोय साधूयापरिहरिऊणज्जाओगवासणेणेव वंदंति॥१६॥ ११९ ]
११३-चर्चा एकसौ तेरहवीं प्रश्न-सवाशिव आवि अन्य मतवाले लोग जीवका स्वरूप जुदा-जुवा मानते हैं सोधे किस-किस 4 प्रकार मानते हैं ?
समाधान-सवाशिव, सांख्य, मस्करी वा संन्यासी, बौद्ध, नैयायिक, वैशेषिक और ईश्वरमंडली । ये छह मतवाले छह दर्शन कहलाते हैं। ये छहों हो दर्शन जीवका स्वरूप भिन्न-भिन्न तरहसे मानते हैं। | सदाशिव वाला तो जीवको सदा कर्मरहित हो मानता है । सांख्यमतवाले मुक्त जीवको सुखसे रहित मानते हैं। । संन्यासमत वाले मुफ्त जीवका भी फिर संसारमें आगमन मानते हैं। अर्थात् उनके मतमें मुक्त जीव भी।
अनेक अवतार धारण करता है। पौलो जोन स्माणिक मानते हैं। योगशास्त्रो जीवको निर्गुणो। मानते हैं। ईश्वरवादी सृष्टिवावके द्वारा ईश्वरको अकृतकृत्य मानते हैं। मंडली मसवाले आत्माको अवगमन
हो निरूपण करते हैं । इस प्रकार छहों वर्शनवाले आत्माके स्वरूपको परस्पर विरुय निरूपण करते हैं सो हो । गोम्मटसारकी टोकामें लिखा है
सदाशिवः सदाकर्मा सांख्यो मुक्तं सुखोज्झितम् ।
मस्करी किल मुक्तानां मन्यते पुनरागतिम् ॥ क्षणिकं निर्गणं चैव बुद्धो योगश्च मन्यते । कृतकृत्यं तमीशानो मंडली चोर्वगामिनम् ।।। इस प्रकार उनके मत परस्पर विरुद्ध हैं।
[ १५ प्रश्न-थे सब वेदको मानने वाले हैं और फिर भी सबके मत परस्पर विरुख हैं। तब सबको एक वेद मतवाले किस प्रकार कहते हैं?
समाधान-ये सब एक नहीं हैं अलग-अलग है । इनके शास्त्रोंका कथन एक दूसरेसे मिलता नहीं।।