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सागर
शुभंतरप्रदेश यः सुखदुःखादिसंकुलम् । प्राप्य रागादिकं हन्यात् क्षेत्रसामायिकं लभेत् ।। २७॥ शीतोष्णादिषु कालेषु समता यो वितन्वते। कालसामायिक तस्य भवत्येव न संशयः ॥ २८॥ त्यक्त्वा रागादिकं योरिमित्रादिष करोति सः। समताधिष्ठितं भावं भावसामायिकं लभेत् ॥ २६ ॥
१०६-चर्चा एक सौ नौवीं प्रश्न--गहस्थ लोग जो अपने घर प्रतिमा रखते हैं उसको मर्यादा ग्यारह अथवा बारह अंगल प्रमाण पा है। बारह अंगुलसे ऊँची प्रतिमा जिनमंदिरमें ही स्थापन करनी चाहिये, यह बात तो प्रसिद्ध है परन्तु ग्यारह । अंगुलमें भी एक, दो, तीन, चार आदि अंगुलोंकी प्रतिमाके प्रमाणका फल षया है ?
समाधान--जो गृहस्थ अपने घर जिनप्रतिमाको रक्खें सो अत्यन्त योग्य और ऊँचे स्थानमें रखना। चाहिये। आगे प्रतिमाको ऊँचाईका अलग-अलग फल बतलाते हैं। एक अंगुलकी प्रतिमा पूजा करनेवालेके लिये। । श्रेष्ठ है। दो अंगुलको प्रतिमा धन नाश करनेवाली है। तीन अंगुल ऊँची प्रतिमा वृद्धिको उत्पन्न करती है।।
चार अंगुल मेंची प्रतिमा पीड़ा उत्पन्न करती है। पाँच अंगुल की प्रतिमा सुखकी वृद्धि करती है । छह अंगुलको । प्रतिमा उद्वेग करती है। सात अंगुलको प्रतिमा गायोंको वृद्धि करती है। आठ अंगुलकी प्रतिमा हानि करती है । नौ अंगुलको प्रतिमा पूजा करनेवाले के लिये पुत्रोंको वृद्धि करती है। दश अंगुल ऊंची प्रतिमा धनका नाश करतो है । ग्यारह अंगलको प्रतिमा गहस्थोंके समस्त काम और अर्थको सिद्धि करनेवाली होती है। इससे अधिक । ऊंची प्रतिमा गृहस्थको अपने घर नहीं रखनी चाहिये। हाँ; जिनमंदिर में विराजमान करने में कोई हानि नहीं है।
इस प्रकार एकसे लेकर ग्यारह अंगुल प्रमाण प्रतिमाका शुभाशुभ फल बतलाया। इनमें भी जो शुभ प्रतिमाएं। हैं यदि उनकी नाक, मुख, नेत्र, हृदय, नाभि आदि स्थान खंडित हो जाये तो घरमें रखकर नहीं पूजना चाहिये। ऐसा वीक्षाकल्पमें लिखा है।