________________
सागर
[ १०७ ]
BE
निम्यानवेवीं
प्रश्न- इस समय इस पांचवें कालमें रत्नत्रयको धारण करनेवाले मुनि अपने उत्कृष्ट भावोंसे स्वर्गलोकमें जाते हैं सो कौनसे स्वर्ग तक जा सकते हैं।
समाधान - पांचवें कालके भावलंगी और रत्नत्रयको धारण करनेवाले मुनि इन्द्र पदवी पाते हैं तथा पांचवें ब्रह्मलोक स्वर्ग में लोकांतिक देवोंकी पववी को पाते हैं तथा वहाँसे आकर मनुष्य होकर मोक्ष जाते हैं इससे सिद्ध होता है कि पांचवें फालके मुनि पाँचवें स्वर्गतक जाते हैं । सो हो मोक्षप्राभूतमें लिखा हैअज्जवि तिरयणसुद्धा अप्पा झाप वि लहइ इंदतं । लोयंलिपदेव राय बुझा बुद्धिं जंति ॥ ७७ ॥
इससे यह भी सिद्ध होता है कि पांचवें कालमें भी जीवोंकी ऐसी शक्ति होती है ।
१०० - चर्चा एकसौवीं
प्रश्न - मिष्यावृष्टिके बाह्य चिह्न कौन-कौन है ?
समाधान — मिध्यावृष्टियोंके विशेष बाह्य चिह्न तो अन्य शास्त्रों में प्रायः सब जगह लिखे हैं । यहाँ केवल सामान्य रीतिसे लिखते हैं-जो देव भूख प्यास आदि अठारह दोष सहित हैं वे कुत्सित देव कहलाते हैं। जिस धर्ममें हिंसा आदि अनेक पाप करने पड़ें उसे कुत्सित धर्म वा कुधमें कहते हैं। जो परिप्रहसहित हों और अनेक पाप रूप आरम्भ करते हों ऐसे भेषी पाखंडियोंको कुगुरु कहते हैं । इस प्रकार कुदेव, कुधर्म और कुगुरुओं को जो पूजे, वंदना करे तथा लज्जा, भय, गौरव जादिके वश होकर भी इसकी पूजा वंदना करे सो प्रगट मिध्यादृष्टि जीव है। भावार्थ - मिध्यादृष्टियोंके ये बाह्य चिह्न हैं। "इन कुवैवादिकोंको सब लोग पूजते हैं। यदि हम न पूजेंगे तो लोग क्या कहेंगे" इस प्रकारको लज्जासे पूजना अथवा सात प्रकारके भयसे पूजना अथवा हम सबसे ऊंची पदवीको धारण करनेवाले हैं हमको तो सबका आदर सत्कार करना चाहिये इत्यादि समझकर पूजना सो गौरवसे होनेवाली पूजा है । इस प्रकार कुवैवाविककी पूजा करना सो सब मिष्यादृष्टि के बाह्य लक्षण हैं। सो ही मोक्षप्राभृत में लिखा है
[ १