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इनके सिवाय वाकीके उम्मीस तीर्थकर विवाह कर निन्थ हुए हैं। सो ही स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा नागर लिखा है१०३ ]
तिहयणपहाणसामि कुमारकाले वितविय तवचरणं ।
वसुपुज्जसुयं मल्लि चरमतियं संथुवे णिच्चं ॥ ४८६ ॥ इस प्रकार पाँच र कुम्हार दालनह्मचारी समझना चाहिये ।
६४-चर्चा चौरानवेवी प्रश्न-लवणोदधि, कालोदधि और अन्तके स्वयंभूरमण समुद्रके जलका स्वाद तो वारा वा जलके समान मालूम है परन्तु बाकोके असंख्याप्त समुद्रोंके जलका स्वाद फैसा है ?
समाधान--ऊपर कहे हुए तीन समुद्रोंके सिवाय बाकीके असंख्यात समुद्रोंके जलका स्वाद ईखके रसके समान मीठा और स्वाविष्ट है।
प्रश्न-ईखके रसके समान मोठा जल तो इक्षुवर समुद्रका है परन्तु यहाँपर सब समुद्रोंका जल ऐसा मीठा कैसे कहा ? तया क्षीरोदधि समुद्रका जल तथा घृतोदधि समुद्रमा जल जुदी-जुदी सरहका बतलाया है इसलिये सबका एकसा स्वाद कैसे कहा ?
समाधान--क्षीरोदधि तथा घुतोवधि आदि समुद्रोंके जलका स्वाद नहीं बतलाया है किन्तु उसका वर्ण बतलाया है। स्वाद तो सबका ही ईखके समान मोठा है । सो ही त्रिलोकसारमें लिखा है
लवणं वारुणितियमिदिकालदुर्गतिसयंभरमणमिदि ।
पत्तेय जलसुवादा अवसेसा होंति इच्छुरसा ॥ ३१९ ॥ यही बात मूलाचारके बारहवें अधिकारमें लिखी है
पत्तेयरसा चत्तारि सायरा तिण्णि होति उदयरसा । अवलेसा य समुदा खोहरसा होति णायव्वा ॥ ३८ ॥