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उसासागर पिपाराणा सामना
वर्षासागर E. ९८1
चाचास्मानचाचा
है बदला नहीं है परन्तु उसने माना हो नहीं। वह बराबर बकता ही रहा तथा लोग भी भांगके नशेमें वैसे ही बन गये और तू पहला ही है पहला हो है इस प्रकार बार-बार बकने लगे। तदनंतर कुछ समय बाद उसे विचार उठा कि “ये झूठे हैं मैं किसीको नहीं मानता। मैं तो अब घर जाकर अपनी स्त्रीसे पूछ्गा वह जरूर पहिचान लेगी।" यह सोचकर वह घर हाला। घर जाते समय मा जसो बानको सब लोगोंसे पूछते-पूछते । थक गया। लोगोंने पहले तो उससे सच बात कही परन्तु पोछे उसे पागल समझकर उन्होंने हसी करनेके लिए बहुत-सी झूठी बातें कहीं। उन सबको सुनता हुआ अनेक स्त्री, पुरुष और बच्चोंके साथ यह घर पहुंचा अपनी ॥ कन्याका नाम लेकर स्त्रीसे पूछा कि "हे फलानेको मां ! तू मुझे पहिचान और सच कह कि मैं वही तेरी पुत्री
का पिता हूँ या और हूँ। मैं तो शिलावाला था पत्परवाला फैसे हो गया । मैं पहले तो पत्थरवाला नहीं था। । तू सच कह" इस प्रकार वह सबको देख देखकर बकने लगा तब वह स्थो बोली कि तुम मेरी कन्याके पिता हो मैं और मेरे तुम स्वामी हो । तुमको ऐसे बचन नहीं कहने चाहिये, लोम सब हँसते हैं । इसलिए सावधान होकर
बैठो। परन्तु फिर भी वह बहुत देरतक बकता हो रहा, अपनी स्त्रीके वचन भी उसने नहीं माने। तब स्त्रीने
उसके पास बैठकर उसे विश्वास दिलाया और हाथ जोड़कर नमस्कार कर अमृत रूपी वचनोंसे कहा कि A "यदि मैं मूठ कहूं तो मेरी कन्याकी सौगंध है। तुम वे ही हो, और नहीं हो।" स्त्रीके ये वचन सुनकर वह बहत ही प्रसन्न हआ, स्त्रोके गलेसे लग गया और हवयसे हवय मिलाकर बोला कि "हे माता! तूने खुब पहिचाना" पतिको यह बात सुनकर वह स्त्री बड़ो लज्जित हई और कहने लगी कि "अलग हटो, मध पीनेवाले। पुरुषके समान क्या बक रहे हो, दूर रहो।" अपनी स्त्रीको यह बात सुनकर वह भांग पीनेवाला पुरुष कहने। लगा कि "हे माता! अबकी बार त फिर कुछ कहेगी तो मैं तुझे अपनी दादी कहूँगा" अब वह इस प्रकार | बकने लगा तब सब लोग उसके जन्ममें धूल डालते हुए उठ गये। इस प्रकार भांग पीनेवालेको कथा लोकवार्तामें है और सुनकर लिखी गई है तथा पहले कहे हुए अठारह दोषोंसे भी मिलती है इसलिए लिखी है। ऐसा समझकर समझदार लोगोंको इसका त्याग कर देना हो उचित है।
जो अज्ञानी हैं, मूर्ख है, दुष्ट हैं, दुर्बुद्धि हैं, कामी हैं, हीनाचारी हैं वा नीच जातिके हैं वे ही भांग पिया करते हैं। इसके सिवाय बरसातके दिनों में तथा जाड़े के विनों में उसमें अनेक सूक्ष्म त्रस जीव उत्पन्न हो