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इसके सिवाय बारह प्रकारके बधन और हैं आगे उन्हींको बतलाते हैं । अभ्याख्यान, वाक्बल, पेशून्य,
अवद्धप्रलाप, रागोत्पाद, अरति उत्पाद, बचना प्रमाण, निःकृति वचन, अप्रणति बाक, मोघ वचन, सम्यग्दर्शन चर्चासागर
वचन और मिथ्यादर्शन वचन । ये बारह प्रकार के भाषण हैं । इनका स्वरूप इस प्रकार हैं-- [८९ ]
दूसरेसे कहना कि हमारे यहां तो हिंसा किये बिना बनता ही नहीं परंपरासे अबतक यही रोति चलो आ रही है देवताओंको बलिदान देना, यज्ञादि कार्यो में बकरे भैसे आविकी हिंसा करना, शिकार खेलना आदि। सनातनोंका कुल धर्म है इत्यादि हिसारूपो वचन कहना अभ्याख्यान बघन हैं। १ । कलहरूप वचन कहना । वाकबल है । २ । दुष्ट बुद्धिके द्वारा दूसरेको निंदा करनेवाले वचन कहना सो पेशून्यता है । ३ । जिसका अंत
न आवे ऐसे अप्रमाण वचन कहना अबद्ध प्रलाप है। पागल पुरुषके समान बफवार करना वा ऐसा ही मूठ बोलना प्रलाप कहलाता है । ४ । राग उत्पन्न करनेवाले बचन कहना रागोत्पावन वचन हैं। ५ । दूसरेको । द्वष उत्पन्न करनेवाले वचन कहना अरतिकर वा अरति उत्पावन बचन कहलाते हैं । ६ । असत्य वस्तुमें सत्यरूप विश्वास उत्पन्न करनेवाले बच्चन कहना बहवंचना प्रमाण है। ७ । कपटरूप बचन कहना बह नि वचन है। ८ । उच्च पदको धारण करनेवालेके लिये नमस्कार न करना तथा उसके अभावमें विनयके वचन न कहना सो अप्रतिवाक् है। ९ । जिन वचनोंको सुनकर कोई भी मनुष्य चोरी करने लग जाय ऐसे बचन कहना सो भोघभाषा है। १० । जिन वचनोंसे दूसरों को सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो ऐसे वचन कहना सो सम्यग्दर्शन। भाषा है । ११ । जिन बचनोंसे मिथ्यात्व उत्पन्न हो ऐसे वचन कहना मिथ्यावर्शन वचन है। सप्रकार वचनोंके बारह भेद है। इनमेंसे सत्यामुवतियोंको सम्यग्दर्शन भाषाके सिवाय बाकोके ग्यारह प्रकारके बधनोंका त्याग कर देना चाहिये।
अब दश प्रकार के सत्य वचनोंको कहते हैं । नाम सत्य, रूपसत्य, स्थापना सत्य, प्रतीतिसत्य, स्मृति। सस्य, योजनासत्य, जिनपवसस्य, उपदेशसत्य और समयसस्य । ये दश प्रकारके सत्य हैं । इनका विशेष स्वरूप लिखते हैं
जिसका जो नाम है उसको उसो नामसे पुकारना नामसत्य है। जैसे किसी दरिद्रोका रंकका नाम लक्ष्मीधर हो सो उसको लक्ष्मीधर ही कहना नामसत्य है। १। किसीका रूप बनाकर उस नामसे कहना जैसे में
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