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चर्चासागर
इति विविधभंगगहने मुदुस्तरे मार्गमूहहष्टीनाम्।
गुरवो भवन्ति शरणं प्रबुद्धनयचक्रसंचाराः॥५॥ इस प्रकार बीमभूतन
८६-चर्चा छियासीवीं प्रश्न-असत्यभाषणका त्याग करनेवाला असत्यको छोड़कर और कौन कौनसे पचन न कहे तथा कौन कौनसे कहे।
समाधान-सत्य भाषण करनेवालेको तबसे पहले तो उसके अतिचार छोड़ देना चाहिये। वे अतिचार अनेक प्रन्योंमें लिखे हैं। मोक्षशास्त्र में लिखा हैमिप्योपदेशरहोभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः ॥-अध्याय ७, मूत्र २६
प्रथम तो इन पांचों अतिचारोंका त्याग कर देना चाहिये। इनके सिवाय नीचे लिखी बातोंका त्याग कर देना चाहिये । जो विद्यमान है उसको नहीं कहना, जैसे देवदत्त घरमें है फिर भी नहीं कह देना, यह पहला असत्य है। नहीं होनेपर विद्यमान है ऐसा कह देना, जैसे घेववत नहीं है तो भी है ऐसा कह देना, यह दूसरा असत्य है । जो पदार्थ है उसको बदल कर कहना जैसे धरनें गाय है परंतु कहना घोड़ा है, यह तीसरा असत्य है। चौये असत्यके गहित, अवध, अप्रिय ऐसे तीन भेद हैं। चुगली खाना वा निदाके वचन कहना, हंसी उठा करना, कठोर वचन कहना. अयोग्य वचन कहना, बकवाद करना, मिथ्यात्वको बड़ानेवाले, अप्रामा| णिक और बागमविष्य वचन कहना सो सब गहित वचन कहलाते हैं। जिन वचनोंसे प्राणियोंकी हिंसा हो ऐसे दूसरोंके अंग उपांगोंको छेवन भेदन करनेवाले, मारनेवाले बचन, अन्ताविके व्यापार संबंधी वचन अथवा चौरी आदि के बचन सो सब अवय अथवा सावध वचन कहलाते हैं। अवद्य शम्बका अर्थ पाप है। पापरूप १. इस प्रकार हिंसाके अनेक भेद हैं इन सब मेदोंको न जाननेवालेके लिये अनेक तपोंके जानकर गुरु हो कारण होते हैं अर्थात्
परम ऋषि ही इनके भेद प्रभेद बता सकते हैं। २. झूठा उपदेश देना, एकांत में की हुई या कही हुई क्रियाको प्रगट कर देना, मूठे लेख लिखना, किसोको धरोहर मार लेना तथा
किसी तरह किसीफे अभिप्रायको जानकर उसको प्रगट कर देना ये पांच सत्याणवतके अतिचार हैं।