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बासागर १२]
तथा उनके कंठको माला मुरझा जाती है जिससे वे अपनी निकट आनेवाली मृत्युको समझ लेते हैं ऐसा कहते हे सो सम्यग्दृष्टीकी माला मुरझाती है या नहीं ?
___समाधान-माला आदिके मुनिका चिह्न मिथ्यादृष्टियोंके ही होता है । सम्यग्दृष्टियोंके नहीं होता।। मिथ्यावृष्टि देव अपनी मृत्युके चिह्नोंको देखकर रोते हैं तथा अत्यन्त दुःखी होते हैं सम्यग्दृष्टीके यह दुःख नहीं होता है सोहो जंबूचरित्रकी तीसरी संधिम लिखा है।
विद्वन्माली सुरस्यादो कथ्यते कथिताधुना। प्रत्यक्ष पश्य भार्याभिश्चतुर्भिः सहितं हितम् ॥ २३ ॥ सम्यक्त्वसहितास्यास्य तेजस्तुच्छं न जायते । माला न झग्यते कंठ स्थिरचित्तस्य कर्हिचित् ॥ २४ ॥ सप्तमे दिवसेऽथासौ श्रुत्वा भूत्वा च मानुषः । चरमांगी तपो घोरं ग्रहीष्यति जिनोदितम् ॥ २५ ॥
६५-चर्चा पैंसठवीं प्रश्न- जो लोग पैरोंमें जूता पहने हुए भगवान्के मंदिर में प्रवेश करते हैं अथवा लकड़ोको खड़ाऊँ पहिनकर जिनमविरमें जाते हैं उनको कैसा पाप लगता है ?
समाधान-जो लोग पैरों में जूता पहिनकर भगवान्के मन्दिर में प्रवेश करते हैं वे सात जन्म सक कोड़ी होते हैं तथा चमारके घर जन्म लेते हैं और जो लोग खड़ाऊँ पहिनकर जिनमन्दिरमें जाते हैं वे बबईके घर जन्म लेकर सात जन्म तक कोढ रोगसे पीडित होते हैं। सो हो लिखा हैपादचर्मस्य रूढा ये चढंति श्रीजिनालये । सप्त जन्म भवेत्कुष्ठी चौरीगर्भसम्भवः ॥ पादुकाभ्यां समागत्य ये चढंति जिनालये । सप्त जन्म भवेत्कुष्ठी बाढीकागर्भसम्भवः ।
ऐसा जानकर ऊपर लिखे कार्य कभी नहीं करने चाहिये ।
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