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सिागर ८४]
८४-चर्चा चौरासीवीं प्रश्न-हिंसाका त्याग और उसका ज्ञान किस प्रकार है ? क्योंकि विना समझे हिंसाका त्याग फिस प्रकार किया जाय ? A समाधान--इसका विशेष वर्णन इस प्रकार है । अहिंसा व्रत लेनेवालेको सबसे पहले नीचे लिखी चार बातें समझनी चाहिये तर किर गया त्या गावाहिये । सबसे पहले हिस्य, हिंसक, हिंसा और हिंसाफल इन चारोंका स्वरूप जान लेना चाहिये । संसारमें जो पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, बनस्पतिकायिक, नित्यनिगोव, इतरनिगोद, यो इन्द्रिय, ते इन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंजीपंचेन्द्रिय, संजीपंचेंद्रिय । आदि अनेक प्रकारके जीव हैं वे हिंस्य ( हिंसा करने योग्य ) हैं इनके विशेष भेष और स्वरूपका वर्णन चौवह मार्गणा तथा बोस प्ररूपणाके द्वारा अनेक भेवरूप श्रीगोम्मटसार आदि अनेक जैन शास्त्रोंमें कहा है यहाँसे समझ लेमा चाहिये । यह हिंस्यका स्वरूप कहा । तथा ऊपर कहे हुए जीवोंको हिंसा करनेवाला हिंसक है। ऊपर लिखे जीवोंका मरण होना हिंसा है। यह हिंसा शब्द हिंसार्थक हिनि धातुसे कृवन्तीय प्रत्यय होकर तथा । स्त्रीलिंगमें आ प्रत्यय होकर बना है । हिंसा सम्बन्धी जानने योग्य चारों भेदोंमें यह तीसरा भेद है । तथा उस हिंसाके पापसे उस हिसा करनेवाले जीवको नरक, तिर्यच आदि अनेक प्रकारको कुयोनियोंमें थोड़ा वा बहुत दुःख भोगना पड़ता है वह हिंसाका थोड़ा था बहुत फल है। इस प्रकार हिंस्य, हिंसक, हिंसा और हिंसाका फल इन चारोंका स्वरूप जानकर फिर अपनी शक्तिके अनुसार हिंसाका त्याग करना चाहिये । सो ही अमृतचंद्रसूरिने पुरुषार्थसिद्धधुपायमें लिखा है--
अवबुध्य हिंस्यहिंसकहिंसाहिंसाफलानि तत्वेन ।
नित्यमवगृहमानै निजशक्त्या त्यज्यतां हिंसा ॥ अत एव अपनी शक्तिको देखकर अणुव्रत वा महावत धारण कर हिंसादिकका त्याग करना चाहिये।
' ८५-चर्चा पिचासीवी प्रश्न-ऊपर जो हिंस्य, हिंसक मादि भेद बतलाये उसमें हिंसाका फल थोड़ा और बहुत बतलाया।.
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