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सागर
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मिथ्यात्वागतदेवस्य सम्यक्त्वरत्ननाशनात् । ated सागरार्द्धायुरिति स्थितिश्च नाकिनाम् ॥ ३३ ॥ त्रिलोकसारमें भी लिखा है ।
संम्मे घादेऊणं सायरद्ल महियमा सहस्सारा । जल हिलमुडुवराऊ पडलं पडि जाणि हाणिचयं ॥ ५३३ ॥
प्रश्न - - यहाँपर फिर कोई यह प्रश्न करे कि बारहवें स्वर्ग से ऊपरके देवोंके क्यों नहीं घटती बढ़ती ? समाधान —- बारहवें स्वर्गसे ऊपरके स्वगों में जिनलिंगके सिवाय अन्य लिंगको धारण करनेवाले मिथ्यादृष्टियोंका गमन नहीं होता अर्थात् अन्यलिंगी मरकर बारहवें स्वर्गसे ऊपर उत्पन्न नहीं होते। बारहवें स्वर्गसे ऊपर जिनगको धारण करनेवाले हो उत्पन्न होते हैं। तथा बारहवें स्वर्गसे ऊपर न तो सम्यक्त्वका नाश होता है और न मिथ्यात्वकी उत्पत्ति होती है । इसीलिये बारहवें स्वर्गसे ऊपर आयुके घटने बढ़नेका नियम नहीं है।
फिर प्रश्न- आयुके दो भेव हैं निषित और निःकांचित । सो इनमेंसे किस आयुवालेकी स्थिति घटती
बढ़ती है ?
समाधान -- निधि आयुवालेको स्थिति ही घटती बढ़ती है। जैसे खविरशाल नामके भीलकी आयु बढ़ गई थी और राजा श्रेणिककी घट गई थी ।
६३ - चर्चा त्रेसठवीं
प्रश्न - स्वर्गके देवोंकी होनाषिक आयुका स्वरूप तो ऊपर लिखे अनुसार समझा परन्तु भवनवासी व्यंतर ज्योतिष्क देवोंकी आयुके घटने बढ़ने की विधि किस प्रकार है ?
१. सम्यक्त्वका घात होनेपर सहस्रार स्वर्गतक आधेसागर आयु घट जाती है और मिथ्यात्वका घाट होनेपर आधासागर बढ़ जाती है । यह कथन घातायुष्ककी अपेक्षा है।
२. जो कर्म उदीरणा को भी प्राप्त न हो सकें और संक्रमण अवस्थाको भी प्राप्त न हो सकें उसे निघत्तिकरण कहते हैं तथा जिस कर्मकी उदीरणा संक्रमण उत्कर्षण और अपकर्षण ये चारों ही अवस्थायें न हो सकें उसे निःकाचितकरण कहते हैं ।
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