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सागर ३]
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६६-चर्चा छयासठवीं पूजाके समय जो नित्य पूजा की जाती है उसमें वेव शास्त्र गुरुको पूजा समुच्चय वा एक साथ को। जाती है सो ही लिखा है
देवनागेशगनवंद्यान् शुभस्पदान् शोभितसारवर्णान् ।
दुग्धाब्धिसंस्पर्द्धिगुणैर्जलोधैर्जिनेंद्रसिद्धांतयतीन् यजेऽहम् ॥ प्रश्न-इत्यादि अर्घ पर्यन्त ऐसा हो समुच्चय पाठ है । सो इसमें वेव पूजा तो मध्यमें करनी चाहिये । तथा सरस्वती और गुरुपादुकाको पूजा किस-किस दिशामें करनी चाहिये ?
समाधान-भगवान् अरहंत देवको पूजा तो मध्यमें करनी ही चाहिये तथा सरस्वतीको पूजा जिनप्रतिमाके वाहिनी ओर और गुरुको पूजा बांई ओर करनी चाहिये। ऐसी आम्नाय है क्योंकि जिनप्रतिमाके र बाई ओर सरस्वतीको मूर्ति है और बाई ओर गुरुपादुका विराजमान है इसलिये पूजा भी इसी प्रकार करनी चाहिये।
६७-चर्चा सडसठवीं प्रश्न-सातिशय अप्रमत्त नामके सातवें गुणस्थानके अन्तिम भागसे महामुनिराज उपशम श्रेणी तथा अपक श्रेणी मांडते हैं। इनमेंसे उपशम श्रेणीवाला वहाँसे लेकर ग्यारहवे गुणस्थान तक जाता है तथा फिर ग्यारहवें गुणस्थानसे नीचे गिरता है । सो इसमें प्रश्न यह है कि वे मुनिराज इसप्रकार अधिकसे अधिक कितनी बार उपशमश्रेणी चढ़ते हैं कितने जन्म तक संयम धारण करते हैं और कितने समयमें मोक्ष प्राप्त करते हैं। । अथवा उन्हें मोक्ष प्राप्त होती ही नहीं ?
समाधान-अधिकसे अधिक चार बार उपशम श्रेणी चढ़ते हैं। जो मुनिराज क्षपकश्रेणी बढ़ते हैं । वे केवलज्ञानपर्यंत चढ़ते हो चले जाते हैं, क्षपकश्रेणीवाले मुनि कभी नोचले गुणस्थानमें नहीं गिरते तथा उप
शमश्रेणीवाले जीव अधिकसे अधिक बसोस बार संयमको पालकर पीछे नियमसे मोक्ष प्राप्त करते हैं । सो हो । स्वामि कार्तिकेयानुप्रेक्षाकी टोकामें लिखा है।
-नारायwalasariLESमरनाrana