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पिसागर
कूर्मः कुभवणः कुरंगकुगुरू कोळ्यका किंकर,
कामः कापुरुषः कुलालकुरवो काकोदरः कर्कशः ॥ कुनेत्रः कुवकः कुनाशः कुकर्णः कर्कतः कुचेताः कृताहुः कुनाभिः ॥ कुदन्तः कुजिहः कुजंघः कुपादः कुभाग्यः कुकर्मा कुतातः कुपुत्रः॥ कुरामः कुसेवः कुवर्णः कुवासः कुलघ्नः कुदेवः कुचेलः कुरागः ।। कुकीर्तिः कुनामा कुशीलः कुनीतिः कुवीरः कुचारः कुमानः कुसंगः ॥ कुबंधुः कुमित्रंकुमारःकुवालः कुजाति कुलारिः कलाहीनकर्को कुभोजी ॥ कुबंधी कुराज्यः कुभारः कुजन्मा कुधर्मा हरेः गालयः स्युः शतानि ॥
८१-चर्चा इक्यासीवीं ढाई द्वीपमें रहनेवाले समस्त विद्याधर तथा चारणऋतिको धारण करनेवाले महामुनिराज इस चित्रा पृथ्वीसे निन्यानवे हजार योजन ऊँचे चढ़कर मेरु पर्वतपर जा पहुंचते हैं ऐसी उनको शक्ति है परन्तु वे ही विद्याधर और महामनि सत्रहसौ इकईस योजन ऊँचे मानुषोत्तर पर्वतको उलंघन कर ढाई द्वीपके बाहर जिनमंदिरोंकी वंदना करने के लिये क्यों नहीं जा सकते ?
समाधान--ढाई द्वीपके बाहर मनुष्यक्षेत्र नहीं है। मनुष्यक्षेत्र मानुषोत्तर पर्वत तक ही है इसलिये । इसका "मानुणोत्तर" ( मनुष्य क्षेत्रसे आगे रहनेवाला ) यह सार्थक नाम है । सो ही मोक्षशास्त्रमें लिखा है।
प्राङमानुषोत्तरान्मनुष्याः । --अध्याय ३ सूत्र सं० ३५।। यही कारण है कि वे विद्याधर वा मुनिराज उसके आगे नहीं आ सकते, मनुष्योत्तरके पर ही रहते है। यदि कोई विमानदिद्यासे अगवा ऋखिसे मानुषोत्तरके आगे जामा चाहे तो भी उसकी सामर्थ्य चलती नहीं उसे उलटा पीछे ही आना पड़ता है। ऐसा नियम श्रीसर्वशदेवके शासनमें कहा है।
प्रश्न- यहाँ कोई प्रश्न करे कि यह कहना असंभव है क्योंकि यह कहना ऐसा ही है जैसा कोई यह कहे कि "एक हाथी एक मामंडल में घुस गया और वह उसके नालमें होकर निकल गया परंतु उसको पूछका एक बाल