________________
वर्षासागर [१३]
वेर तक खड़े रहते हैं। भागोरस पूरा होने पर फिर रिमा पन्गाहे बाड़े नहीं रह सकते । सो हो धर्मरसिक ग्रन्थमें लिखा है। गखा पहांगणे तस्य तिष्ठेच्च मुनिरुत्तमः।नमस्कारान् पदान् पंच नववार जपेच्छुचिः ॥७१५ तं दृष्ट्वा शीघ्रतो भक्त्या प्रतिमाहत भक्तिकैः। इस प्रकार और भी बहुत सा वर्णन है ।
५१-चर्चा इक्यावनवीं प्रश्न--भगवान् तीर्थकर जब गर्भ में आते हैं तब उस दिनसे छह महीने पहलेसे हो जन्म होने तक । अर्थात् पन्द्रह महोने तक कुबेर इन्द्रको आज्ञासे रत्नोंकी वर्षा करता है । सो प्रतिदिन कितनी बार करता है। और कौन-कौनसे समय करता है ?
समाधान—वह रत्नोंकी वर्षा भगवान्के माता-पिताके घर चार बार होती है सबेरे, दोपहरको, सायं-1 कालको और आधी रातके समय । सथा एक एकबारमें साढ़े तीन करोड़ रत्नोंको वर्षा होती है। इस प्रकार ॥ पंद्रह महीने तक बराबर होती रहती है । सो हो लिखा है-- पवण्हे मज्झण्हे अवरण्हे मज्झिमायरयणीये । आहुट्टयकोडीओ रयणाणं वरिसेऊ ।। इस प्रकार प्रतिदिन चारों समयमें चौवह करोड़ रत्न बरसते हैं।
५२-चर्चा बावनवीं प्रश्न-फेवली भगवान्की दिव्यध्वनि नियमसे तीन बार खिरती है ऐसा सुनते है सो क्या ये बात ठीक है?
समाधान केवली भगवान्को दिव्यध्वनि प्रतिदिन चार बार खिरती है। प्रातःकाल, मध्याह्नकाल, सायंकाल और अर्द्धरात्रि इन चारों समयमें छह-छह घड़ो तक दिव्यध्वनि खिरती है। इन चार समयके सिवा पवीधर और महापुण्यवान
माहापुण्यवान पुरुषों के प्रश्न करनेपर बसरे समय भी खिरतो है। इससे सिद्ध होता है कि चार समय तो नियमसे खिरती है तथा इनके सिवाय भी यथेष्ट कारग मिलने पर खिरतो हे सो हो लिखा है