Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचाराङ्गसूत्रे का कभी नाश नहीं होता, (२) वस्तुत्व - इस गुण के निमित्त से द्रव्य क्षण २ में कुछ न कुछ काम किया ही करता है । (३) द्रव्यत्व - इस गुण के निमित्त से द्रव्य में एकसी व भिन्न प्रकार की अवस्थाएँ बदला करती हैं, (४) अगुरुलघुत्व - इसके निमित्त से द्रव्य सदा अपनी मर्यादा में ही रहता है - कोई भी इसका गुण दूसरे गुणरूप नहीं हो सकता, कोई दूसरा गुण भी उसमें बाहर से आकर नहीं मिल सकता, (५) प्रदेशवत्त्व - इस गुण के निमित्त से द्रव्यका कोई न कोई आकार अवश्य होता है, (६) प्रमेयत्व - इस गुण के निमित्त से द्रव्य किसी न किसी ज्ञानका विषय होता रहता है।
आत्मा और पुद्गल में एक ऐसी वैभाविक शक्ति है कि जिससे ये दोनों अनादिकाल से अन्योन्यसंपृक्त होने के कारण स्वभाव से अन्यथा होने रूप विभाव अवस्था में पड़े हुए हैं । इनकी यह विभाव अवस्था अनादिकाल की है- आज नई पैदा नहीं हुई है, इसी से जीव में पुद्गल के निमित्त से विभाव-अन्यथाभाव रूप परिणमन और विभावदशासंपन्न जीव के निमित्त से पुद्गल में विभाव - (कर्म) रूप परिणमन हुआ करता है। इनका यह परिणमन अनादिकालका है-आजका नहीं।
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२ वस्तुत्व - गुणुना निभित्तथी द्रव्य क्षण-क्षणुभां ने अभ अर्था ४२ छे. 3 द्रव्यत्व- या गुणना निभित्तथी द्रव्यभां ये भने लिन्न प्राश्नी अवस्थामो महस्यां ४रे छे. ४ अगुरुलघुत्व-सेना निभित्तथी द्रव्य सहा पोतानी भर्याहाभां रहे છે, કાઇ પણ તેના ગુણ ખીજા ગુણરૂપ બની શકતા નથી, અને ખીજો ગુણ પણ तेमां महारथी भावी भणी शडतो नथी. ५ प्रदेशवत्त्व- या गुणुना निभित्तथी द्रव्यनो अर्ध ने अह आअर अवश्य थाय छे. ६ प्रमेयत्वमा गुगुना निभित्तथी દ્રવ્ય કોઈ ને કોઈ જ્ઞાનના વિષય થઈ રહે છે.
આત્મા અને પુદ્ગલમાં એક એવી વૈભાવિક શક્તિ છે કે જેનાથી એ બન્ને અનાદિ કાળથી અન્યાન્ય સંયુક્ત હાવાને કારણે સ્વભાવથી અન્યથા હેાવારૂપ વિભાવ અવસ્થામાં પડેલ છે, તેની આ વિભાવ અવસ્થા અનાદિ કાળની છે. આજ નવી પેદા થયેલ નથી.
એનાથી જીવમાં પુદ્ગલના નિમિત્તથી વિભાવ–અન્યથા ભાવરૂપ પરિણમન અને વિભાવદશાસંપન્ન જીવના નિમિત્તથી પુદ્ગલમાં વિભાવ( કર્મ )–રૂપ પરિ ણુમન થયા કરે છે. તેનું આ પરિણમન અનાદિ કાળનુ છે. આજનું નહિ.
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨