Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारागसूत्रे प्रतिज्ञा मुनिना न कार्येति तात्पर्यम् । यद्वा-भैक्षाचरणादौ 'ममैवाहारादिकं स्यादित्यादिप्रतिज्ञा न साधीयसी। अथवा-यथा स्याद्वादसिद्धान्ते ' ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः' इत्यस्ति तत्र एकतरेणैव तदधिगम इत्यादिप्रतिज्ञा न विधेयेत्यर्थः, पञ्चमहाव्रतातिरिक्त कस्मिंश्चिदपि विषये प्रतिज्ञा न कर्तव्या मुनिना । यदिवा अप्रतिज्ञः अनिदानः मायाशल्यादिरहित इत्यर्थः । ईदृशोऽनगारः किं कृत्वा विहरतीत्याह–'द्विधातः' इत्यादि, द्विधातः उभौ रागद्वेषावित्यर्थः छित्त्वा व्यपनीय नियाति-नि-निश्चयेन याति मोक्षमार्ग प्राप्नोति, पूर्वगुणसम्पन्नोऽपि रागवान् द्वेषवांश्च न मोक्षं लभत इति भावः । भिक्षा के समय में 'मुझे ही आहारादिक मिले' ऐसी प्रतिज्ञा नहीं करनी चाहिये, क्यों कि मुनि के लिये इस प्रकार की प्रतिज्ञा करना उचित नहीं है। ज्ञान और क्रिया इन दोनों से मुक्ति का लाभ स्याबादसिद्धान्त में प्रतिपादित किया गया है, परन्तु इस प्रकार की प्रतिज्ञा करना कि'सिर्फ ज्ञानमात्र से या क्रियामात्र से ही मुक्ति होती है उचित नहीं है। मुनियों को पंचमहाव्रतों के आराधन करने के सिवाय अन्य किसी भी विषय में प्रतिज्ञा नहीं करनी चाहिये । ___ अथवा “अप्रतिज्ञः" इस शब्द का अर्थ-'मायादि तीन शल्यों रहित' होता है ।अनगारों का सर्व संयम शल्यत्रय से रहित होकर ही निर्मल हो सकता है । इन पूर्वोक्तविशेषणविशिष्ट अनगार ही राग और द्वेषों का उन्मूलन कर "नियाति" निश्चय से मोक्ष के मार्ग को प्राप्त करता है। रागद्वेष के उन्मूलन के अभाव में इन पूर्वोक्तगुणसम्पन्न भी अनगार “ अप्रतिशः ” विशेष सापेस छे. अथवा-मिक्षासमयमा भने આહારદિક મળે” એવી પ્રતિજ્ઞા કરવી જોઈએ નહિ, કારણ કે મુનિ માટે આવા પ્રકારની પ્રતિજ્ઞા કરવી ઉચિત નથી. જ્ઞાન અને ક્રિયા આ બન્નેથી મુક્તિને લાભ સ્યાદ્વાદસિદ્ધાન્તમાં પ્રતિપાદિત કરેલ છે, પરંતુ એવા પ્રકારની પ્રતિજ્ઞા કરવી કે “ફક્ત જ્ઞાનમાત્રથી અગર કિયામાત્રથી જ મુક્તિ થાય છે” તે ઉચિત નથી. મુનિએ પંચ મહાવ્રતનું આરાધન કરવા સિવાય બીજા કોઈ પણ વિષયમાં પ્રતિજ્ઞા નહિ કરવી જોઈએ. ___ मथवा “ अप्रतिज्ञः ” ॥ शहनी मथः भायात्र शस्योथी २लित'
થાય છે. અણગારેને સર્વ સંયમ શલ્યત્રયથી રહિત બનીને જ નિર્મળ થઈ શકે છે. આ પૂર્વોક્તવિશેષણવિશિષ્ટ અણગાર જ રાગ અને દ્વેષનું ઉમૂલન કરી “नियाति" निश्चयथी भाक्षना भागने प्रात ४२ छ. शाषना भूदानन
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨