Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 728
________________ सम्यक्त्व -अध्य० ४. उ. ४ ममैव नायमाशयः किन्तु सर्वेषामर्हतामिति दर्शयितुं भगवान् प्राह-'जे खलु भो' इत्यादि। यद्वा--सम्यक्त्वमुक्तं, निरवद्यं तपश्चारित्रमपि, इदानीं तत्फलमाह--'जे खलु भो' इत्यादि। ___ मूलम्-जे खलु भो! वीरा समिया सहिया सयाजया संघडदंसिणो आओवरया अहातहा लोयं उवेहमाणा पाईणं पडीणं दाहिणं उईणं इय सच्चंसि परिविचिटिंसु ॥सू०१०॥ छाया-ये खलु भो! वीराः समिताः सहिताः सदायताः संघटदर्शिनः,आत्मोपरताः यथातथा लोकमुपेक्षमाणाः प्राचीनं प्रतीचीनं दक्षिणम् , इति सत्ये परिव्यस्थुः ॥१०॥ मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योगों के द्वारा जो किये जाते हैं वे कर्म हैं । ये ज्ञानावरणीयादिक के भेद से आठ प्रकारके हैं। आत्मा के साथ इनका सम्बन्ध अनादिकाल से हो रहा है। कोई भी कर्म जब तक अपना फल नहीं देता तब तक वह आत्मा से नष्ट नहीं होता; यह नियम है, अतः वह वेदवित् सम्यग्ज्ञानी पुरुष कर्मोसे और उन कर्मों के कारण मिथ्यादर्शनादिकोंसे, तथा मिथ्यादर्शनादिके कारण कषायों से सदा दूर ही रहता है । अर्थात् कर्मबन्ध के कारणभूत समस्त सावद्य व्यापार का वह त्याग कर देता है । सू०९॥ इस कथन में सच तीर्थङ्करों की सम्मति प्रदर्शित करते हैं-'जे खलु भो' इत्यादि । अथवा समकित को कहा और निर्दोष तप चारित्र को भी कहा; अब उसका फल कहते हैं-'जे खलु भो' इत्यादि । - મિથ્યાદર્શન, અવિરતિ, પ્રમાદ, કષાય અને ગદ્વારા જ કરવામાં આવે છે તે કર્મ છે. તે જ્ઞાનાવરણીયાદિકના ભેદથી આઠ પ્રકારના છે. આત્માની સાથે તેને સંબંધ અનાદિ કાળથી થઈ રહ્યો છે. કઈ પણ કર્મ જ્યાં સુધી પિતાનું ફળ नथी २५तुं त्या सुधी ते यात्माथी नष्ट थतुं नथी; ये नियम छे. तेथी ते वेदवित्-सभ्यशानी ५३५ थी अने ते र्भाना २९ भिथ्या-शनायो भने મિથ્યાદર્શનાદિકના કારણે કષાયથી સદા દૂરજ રહે છે. અર્થાત કર્મબંધના કારણભૂત સમસ્ત સાવદ્ય વ્યાપારને તે સદા ત્યાગ કરી દે છે. તે સૂ૦ ૯ છે मा थनमा ५॥ तीर्थ शेनी समिति प्रदर्शित रे छे-जे खलु भो' ઈત્યાદિ. અથવા સમકિત કહ્યું, નિર્દોષ તપ ચારિત્ર પણ કહ્યું હવે તેનું ફળ हे छ-'जे खलु भो' त्याहि. શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨

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