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अधिकार पाँचवां
[वैराग्य-संभव] भवस्वरूपविज्ञानाद् द्वेषान्नैर्गुण्यदृष्टिजात् । तदिच्छोच्छेदरूपं द्राग् वैराग्यमुपजायते ॥१॥
भावार्थ : संसार के स्वरूप का विशेष ज्ञान होने से, नैर्गुण्य (निःसार) दृष्टि से देखने से उत्पन्न द्वेष (अरुचि) से आत्मा में तत्काल उस संसार (जन्ममरणरूप) की इच्छा का उच्छेदरूप वैराग्य पैदा हो जाता है । संसार के स्वरूप का विशेष बोध हो जाने से तथा संसारी जीवों को अपने आत्मपक्ष में लेशमात्र भी गुण (सार) संसार में नहीं दिखाई देता; जैसे शरीर में सूजन होने से वह फूला हुआ (पुष्ट) दिखता है, किन्तु होता है खोखला ही; वैसे ही संसार थोथे आडम्बरों से भरा है, निःसार है, दुःखमय एवं भयानक है, इस प्रकार संसार के प्रति अरुचि (द्वेष) होने से, संसारसुख की अभिलाषा से निवृत्तिरूप (संसार-विच्छेदनरूप) वैराग्य शीघ्र ही पैदा हो जाता है ॥१॥ सिद्ध्या विषयसौख्यस्य वैराग्यं वर्णयन्ति ये । मतं न युज्यते तेषां यावदाप्रसिद्धितः ॥२॥
भावार्थ : जो विषयसुख की सिद्धि को लेकर वैराग्य प्राप्त होने का निरूपण करते हैं, 'जब तक पदार्थ है, तब तक ४४
अध्यात्मसार