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हेतुभूतनिषेधो न स्वानुपाख्याविधिर्न च । स्वभाववर्णना नैवमवधेर्नियतत्वतः ॥८०॥
भावार्थ : मोक्षावधि नियत है, इस कारण हेतुरूप सामग्री का निषेध नहीं है तथा आत्मा के निषेध का विधान नहीं है । ऐसा होने से स्वभाव की वर्णना उत्पन्न नहीं होती ॥८०॥ न च सार्वत्रिको मोक्षः संसारस्यापि दर्शनात् । न चेदानीं न तद्व्यक्तिर्व्यञ्जको हेतुरेव यत् ॥८१॥
भावार्थ : संसार दृष्टिगोचर होता है, इसलिए सर्वत्र मोक्ष नहीं होता तथा वर्त्तमान में उस मोक्ष की स्पष्टता (अभिव्यक्ति) नहीं होती, ऐसा भी नहीं कहना चाहिए । क्योंकि मोक्ष को प्रकट करने वाला हेतु = साधन तो है ही ॥ ८१ ॥ मोक्षोपायोऽस्तु किन्त्वस्य निश्चयो नेति चेन्मतम् । तन्न रत्नत्रयस्यैव तथाभावविनिश्चयात् ॥८२॥
भावार्थ : मोक्ष का उपाय भले ही हो, किन्तु उपाय का स्पष्टरूप से (अमुक) निश्चय नहीं है, यदि आपका ऐसा मत है तो वह यथार्थ नहीं है; क्योंकि रत्नत्रय ही मोक्षोपाय के रूप में
निश्चित हैं ॥८२॥
भवकारणरागादि प्रतिपक्षमदः खलु । तद्विपक्षस्य मोक्षस्य कारणं घटतेतराम् ॥८३॥
अधिकार तेरहवां
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