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फल हैं, ऐसा स्याद्वादरूपी कल्पवृक्ष सदा विजयी होता है । उसके ऊपर से गिरे हुए अभीष्ट और अध्यात्मरूपी छोटी-छोटी बातों वाले प्रवादरूपी पुष्पों से षड्दर्शनरूपी उपवन की भूमि अत्यन्त सौरभ फैला रही है ॥२॥
चित्रोत्सर्गशुभापवादरचनासानुश्रियालंकृतः । श्रद्धानन्दनचन्दनद्रुमनिभप्रज्ञोल्लसत्सौरभः ॥ भ्राम्यद्भिः परदर्शनग्रहगणैरासेव्यमानः सदा । तर्कस्वर्णशिलोच्छ्रितो विजयते जैनागमो मन्दरः ॥३॥
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भावार्थ : अनेक प्रकार के उत्सर्ग और शुभ अपवादमार्ग की रचनारूपी शिखरों की शोभा से जो अलंकृत है | श्रद्धारूपी नन्दनवन के चन्दनतरुओं के सदृश बुद्धि से जिसमें सुगन्ध फैल रही है । परिभ्रमण करते हुए परदर्शनरूपी ग्रहगणों के द्वारा जो निरन्तर सेवित है और तर्करूपी स्वर्णशिलाओं से जो अति उन्नत है, ऐसा जिनामगरूपी मेरुपर्वत विजयी हो ॥३॥
स्याद्दोषापगमस्तमांसि जगति क्षीयन्त एव क्षणादध्वानो विशदीभवन्ति निबडा निद्रा दृशोर्गच्छति ॥ यस्मिन्नभ्युदिते प्रमाण दिवसप्रारम्भकल्याणिनी । प्रौढत्वं नयगीर्दधाति स रविर्जेनागमो नन्दतात् ॥४॥
भावार्थ : जिसका उदय होने से जगत् में मोहरूपी रात्रि का नाश हो जाता है और पृथ्वी पर सर्वत्र अज्ञानरूपी अन्धकार
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अध्यात्मसार