Book Title: Adhyatma Sara
Author(s): Yashovijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

Previous | Next

Page 303
________________ गम्भीर अर्थ कहने में कठिनता (मुश्किल होने) का दोष देते हैं । इस कारण ऐसा कौन-सा गुण हो? कौन-सा कवि हो? और कौन-सा काव्य हो? कि इस प्रकार की स्थिति का उच्छेद करने वाली बुद्धि का हरण सत्पुरुषों की देखी हुई नियत व्यवस्थाएँ कर लेती हैं ॥४॥ अध्यात्मामृतवर्षिणीमपि कथमापीय सन्तः सुखं, गाहन्ते विषमुगिरन्ति तु खला वैषम्यमेतत्कुतः । नेदं वाद्भुतमिन्दुदीधितिपिबः प्रीताश्चकोरा भृशं किं न स्युर्बत चक्रवाकतरुणास्त्वत्यन्तखेदातुराः ॥५॥ भावार्थ : अध्यात्मरूपी अमृत की वर्षा करने वाली कथा का पान करके सत्पुरुष सुख पाते हैं और उसी कथा का पान करके दुर्जन लोग जहर उगलते हैं । इस प्रकार की विषमता कहाँ से आई? अथवा यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है; क्योंकि चन्द्रमा की किरणों का पान करके चकोर पक्षी अत्यन्त प्रसन्न होते हैं, परन्तु उसी चन्द्र के उदय से जवान चक्रवाक का जोड़ा क्या खेदातुर नहीं होता? होता ही है ॥५॥ किञ्चित्साम्यमवेक्ष्य ये विदधते काचेन्द्रनीलाभिदां, तेषां न प्रमदावहा तनुधिया गूढा कवीनां कृतिः । ये जानन्ति विशेषमप्यविषमे रेखोपरेखांशतो, वस्तुन्यस्तु सतामितः कृतधियां तेषां महानुत्सवः ॥६॥ अधिकार इक्कीसवाँ ३०३

Loading...

Page Navigation
1 ... 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312