Book Title: Adhyatma Sara
Author(s): Yashovijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 309
________________ चक्रे प्रकरणमेतत् तत्पदसेवापरो यशोविजयः । अध्यात्मधृतरुचीनामिदमानन्दावहं भवतु ॥ १६ ॥ भावार्थ : उन गुरुदेव की चरणसेवा करने में तत्पर यशोविजय (उपाध्याय) ने यह प्रकरण (अध्यात्मसार) रचा (बनाया) है। यह प्रकरण अध्यात्म में रुचि रखने वाले पुरुषों के लिए आनन्ददायक हो ॥१६॥ ॥ इति सज्जनस्तुतिः, इति प्रशस्तिश्च ॥ इतिश्री महोपाध्याय श्रीकल्यणविजयगणिशिष्यमुख्यपण्डितश्री लाभविजयगणिशिष्य मुख्यपण्डितश्रीजीतविजयगणिसतीर्थ्य- मुख्यपण्डित - श्रीनयविजयगणि-चरणकमलचंचरीकेण, पण्डितश्रीपद्मविजयगणि-सहोदरेण पण्डित श्रीयशोविजयेन विरचितेऽध्यात्मसारप्रकरणे सप्तमः प्रबंधः ॥ अधिकार इक्कीसवाँ ३०९

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