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अवलम्ब्येच्छायोगं पूर्णाचारासहिष्णवश्च वयम् । भक्त्या परममुनीनां तदीयपदवीमनुसरामः ॥२८॥
भावार्थ : पूर्ण आचार का पालन करने में असमर्थ हम इच्छायोग का अवलम्बन लेकर श्रेष्ठ मुनियों की भक्ति से उनके मार्ग का अनुसरण करते हैं ॥२८॥ अल्पाऽपि याऽत्र यतना निर्दम्भा सा शुभानुबन्धकरी । अज्ञानविष-व्यवकृद् विवेचनं चात्मभावानाम् ॥२९॥
भावार्थ : इस इच्छायोग में जरा-सी भी दम्भरहित जो यतना है वह शुभानुबन्धकारिणी है तथा आत्मा के परिणाम का जो विवेचन है, वह अज्ञानरूपी विष का नाश करने वाला है ॥२९॥ सिद्धान्ततदंगानां शास्त्राणामस्तु परिचयः शक्त्या । परमालम्बनभूतो दर्शनपक्षोऽयमस्माकम् ॥३०॥
भावार्थ : शक्ति के अनुसार सिद्धांत और उनके अंग रूप शास्त्रों का परिचय हो, यह हमारा परम आलम्बनरूप दर्शन का पक्ष है ॥३०॥ विधिकथनं विधिरागो विधिमार्गे स्थापनं विधीच्छूनाम् । अविधिनिषेधश्चेति प्रवचनभक्तिः प्रसिद्धा नः ॥३१॥
भावार्थ : विधि का कथन करना, विधि के प्रति प्रीति, विधि के अभिलाषियों को विधिमार्ग में प्रवृत्त (स्थापित) २९६
अध्यात्मसार