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सूक्ष्मक्रियानिवृत्याख्यं तृतीयं तु जिनस्य तत् । अर्धरुद्धांगयोगस्य रुद्धयोगद्वयस्य च ॥७८॥
भावार्थ : सूक्ष्मक्रियानिवृत्ति नामक तीसरा शुक्लध्यान जिन (केवलज्ञानी) को होता है, इसमें दो योगों का निरोध हो जाता है और एक योग का अर्द्धनिरोध होता है ॥७८॥ तुरीयं तु समुच्छिन्नक्रियमप्रतिपाति तत् ।। शैलवन्निष्पकम्पस्य शैलेश्यां विश्ववेदिनः ॥७९॥
भावार्थ : सर्वथा उच्छिन्न व्यापार वाला; फिर कभी गिरे नहीं, इस प्रकार का (अप्रतिपाती) और शैलेशी अवस्था में उत्पन्न होने वाला चौथा शुक्लध्यान समुच्छिन्नक्रियाप्रतिपाति नाम का है। यह ध्यान पर्वत की तरह अचल, निष्कम्प सर्वज्ञ को होता है ॥७९॥ एतच्चतुर्विधं शुक्लध्यानमत्र द्वयोः फलम् । आद्ययोः सुरलोकाप्तिरन्त्ययोस्तु महोदयः ॥८०॥
भावार्थ : उपर कहे अनुसार शुक्लध्यान चार प्रकार का है । उनमें से प्रथम के दो शुक्लध्यानों का फल स्वर्ग (देवलोक) की प्राप्ति है तथा अन्तिम दो शुक्लध्यानों का फल महोदय=मोक्ष है ॥८०॥ आश्रवापायसंसारानुभावभवसन्ततीः । अर्थे विपरिणामं वाऽनुपश्येच्छुक्लविश्रमे ॥८१॥ अधिकार सोलहवाँ
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