Book Title: Adhyatma Sara
Author(s): Yashovijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 276
________________ भावार्थ : यदि वस्त्रादि धारण करने की इच्छा मोक्ष में बाधक है, तो उसकी (वस्त्र की) इच्छा के बिना ही हाथ इत्यादि की तरह धारण किए हुए वस्त्रादि के होने में क्या बाधा है ? ॥ १८५ ॥ स्वरूपेण च वस्त्रं चेत्केवलज्ञानबाधकम् । तदा दिक्पटनीत्यैव तत्तदावरणं भवेत् ॥१८६॥ भावार्थ : यदि वस्त्र स्वरूप से ही केवलज्ञान में बाधक हैं तो दिगम्बर मत के अनुसार केवलज्ञानावरणीय के समान वस्त्रावरण भी होना चाहिए || १८६ | इत्थं केवलिनस्तेन मूर्ध्नि क्षिप्तेन केनचित् । केवलित्वं पलायेतेत्यहो किमसमञ्जसम् ॥१८७॥ भावार्थ : ऐसा होने पर तो केवली के मस्तक पर कोई व्यक्ति वस्त्र डाल दे तो उनका केवलज्ञान नष्ट हो (भाग) जाना चाहिए, यह कैसा असमंजसपूर्ण (अयोग्य, अटपटा) कथन है? ॥१८७॥ भावलिंगात् ततो मोक्षो, भिन्नलिंगेष्वपि ध्रुवः । कदा ग्रहं विमुच्यैतद् भावनीयं मनस्विना ॥१८८॥ भावार्थ : इसलिए भिन्नलिंग वाले होने पर भी भावलिंग से अवश्य मोक्ष है । अतः कदाग्रह छोड़कर मनस्वी पुरुष को इस पर भलीभाँति विचार करना चाहिए ॥१८८॥ अशुद्धनयतो ह्यात्मा बद्धो मुक्त इति स्थिति: । न शुद्धनयतस्त्वेष बद्ध्यते नाऽपि मुच्यते ॥ १८९॥ २७६ अध्यात्मसार

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