________________
भावार्थ : कर्मद्रव्यों का जो क्षय, वह द्रव्यमोक्ष कहलाता है, पर वह आत्मा का लक्षण नहीं है । परन्तु उस द्रव्यमोक्ष का हेतुरूप रत्नत्रयी से युक्त जो आत्मा है, वह भावमोक्ष कहलाती है ॥१७८॥ ज्ञानदर्शनचारित्रैरात्मैक्यं लभते यदा । कर्माणि कुपितानीव भवन्त्याशु तदा पृथक् ॥१७९॥
भावार्थ : जब आत्मा ज्ञान, दर्शन और चारित्र के साथ एक्य (तादाम्य) प्राप्त कर लेता है, तब कर्म मानो कुपित हो कर शीघ्र ही पृथक् हो जाते हैं ॥१७९॥ अतो रत्नत्रयं मोक्षस्तदभावे कृतार्थता । पाखंडिगणलिंगैश्च गृहिलिंगैश्च काऽपि न ॥१८०॥
भावार्थ : इस कारण रत्नत्रयरूप मोक्ष है। उस रत्नत्रय के अभाव में पाखंडी गण के वेषों में या गृहस्थवेषों में कोई कृतार्थता नहीं है ॥१८०॥ पाखंडिगणलिंगेषु गृहीलिंगेषु ये रताः । न ते समयसारस्य ज्ञातारो बालबुद्धयः ॥१८१॥
भावार्थ : जो पाखंडियों के नाना वेषों में या गृहस्थवेषों में आसक्त हैं, वे बालबुद्धि हैं, समयसार (सिद्धान्त के तत्त्व) के जानकार नहीं हैं ॥१८१॥
२७४
अध्यात्मसार