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अधिकार अठारहवां
[आत्मविनिश्चय] आत्मज्ञानफलं ध्यानमात्मज्ञानं च मुक्तिदम् । आत्मज्ञानाय तन्नित्यं यत्नः कार्यो महात्मना ॥१॥
भावार्थ : ध्यान का फल आत्मज्ञान है और वह आत्मज्ञान मुक्ति का दाता है। इसलिए महान् आत्मा को सदा आत्मज्ञान में पुरुषार्थ करना चाहिए ॥१॥ ज्ञाते ह्यात्मनि नो भूयो ज्ञातव्यमवशिष्यते । अज्ञाते पुनरेतस्मिन् ज्ञानमन्यन्निरर्थकम् ॥२॥
भावार्थ : जिसने आत्मा को जान लिया, उसे और कुछ जानने को अवशिष्ट नहीं रहता । और यदि आत्मा को नहीं जाना तो सब ज्ञान (जाना हुआ) निरर्थक है ॥२॥ नवानामपि तत्त्वानां ज्ञानमात्मप्रसिद्धये । येनाऽजीवादयो भावाः स्वभेदप्रतियोगिनः ॥३॥
भावार्थ : नौ तत्त्वों का ज्ञान भी आत्मा की सिद्धि के लिए ही है, क्योंकि अजीव आदि पदार्थ आत्मभेद के प्रतियोगी हैं ॥३॥ श्रुतो ह्यात्मपराभेदोऽनुभूतः संस्तुतोऽपि वा। निसर्गादुपदेशाद् वा वेत्ति भेदं तु कश्चन ॥४॥ अधिकार अठारहवाँ
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