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आत्मनस्तदजीवेभ्यो विभिन्नत्त्वं व्यवस्थितम् । व्यक्तिभेदनयादेशादजीवत्त्वमपीष्यते ॥५३॥
भावार्थ : इस कारण आत्मद्रव्य की अजीवद्रव्यों से भिन्नता सिद्ध हो जाती है तथा व्यक्तिभेद करने वाले नय के आदेश से आत्मा का अजीवत्त्व भी इष्ट हो, ऐसा ही चाहते हैं ॥५३॥ अजीवा जन्मिनः शुद्धभावप्राणव्यपेक्षया । सिद्धाश्च निर्मलज्ञाना द्रव्यप्राणव्यपेक्षया ॥५४॥
भावार्थ : शुद्ध भावप्राण की अपेक्षा से संसारी जीव अजीव हैं और निर्मल ज्ञानवान् सिद्धजीव द्रव्यप्राण की अपेक्षा से अजीवरूप हैं ॥५४॥ इन्द्रियाणि बलं श्वासोच्छ्वासो ह्यायुस्तथाऽपरम् । द्रव्यप्राणाश्चतुर्भेदाः पर्यायाः पुद्गलाश्रिताः ॥५५॥
भावार्थ : इन्द्रियाँ, बल, श्वासोच्छ्वास तथा आयुष्य ये चार प्रकार के द्रव्यप्राण हैं, जिनके पर्याय पुद्गलाश्रित हैं ॥५५।। भिन्नास्ते द्यात्मनोऽत्यन्तं तदेतैर्नास्ति जीवनम् । ज्ञान-वीर्य-सदाश्वास-नित्यस्थितिविकारिभिः ॥५६॥
भावार्थ : आत्मा से ये द्रव्यप्राण सर्वथा भिन्न हैं । इस कारण ज्ञान, वीर्य, सदा श्वास और नित्य स्थिति से विकृत रूप वाले उन द्रव्यप्राणों (के आधार) से आत्मा का जीवन (जीना) नहीं होता ॥५६॥ २३८
अध्यात्मसार