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भावार्थ : यह नय परभावों के कर्तृत्व का स्वीकार नहीं करता, क्योंकि एक द्रव्य में दो क्रियाएँ जिनेश्वरों द्वारा अभिमत नहीं है ॥९८॥ भूतिर्या हि क्रिया सैव स्यादेकद्रव्यसन्ततौ । न साजात्यं विना च स्यात् परद्रव्यगुणेषु सा ॥१९॥
भावार्थ : एक द्रव्य की सन्तति में जो क्रिया होनी होती है, वही क्रिया होती है, वह क्रिया परद्रव्य के गुणों में समानजातीयता के बिना नहीं होती ॥९९॥ नन्वेवमन्यभावानां न चेत् कर्ताऽपरो जनः । तदा हिंसादयादानहरणाद्यव्यवस्थितिः ॥१००॥
भावार्थ : यदि दूसरा कोई (आत्मा) व्यक्ति अन्य भावों का कर्ता नहीं होता है, तो फिर हिंसा, दया, दान, और हरण आदि की व्यवस्था नहीं होगी ॥१००॥ सत्यं पराश्रयं न स्यात् फलं कस्यापि पद्यपि । तथापि स्वगतं कर्म स्वफलं नातिवर्तते ॥१०१॥
भावार्थ : "वत्स ! तुम्हारा कहना सत्य है कि पराश्रित फल यद्यपि किसी को भी नहीं होता; तथापि स्वयं में स्थित कर्म अपने फल का उल्लंघन नहीं करता ॥१०१। हिनस्ति न पर कोऽपि, निश्चयान्न च रक्षति । तदायुः कर्मणो नाशे, मृतिर्जीवनमन्यथा ॥१०२॥ अधिकार अठारहवाँ
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