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भावार्थ : कदाग्रह में स्थित पुरुष के साथ मैत्री करने वाला चारों ओर से उसी तरह दुःख पाता है, जिस तरह पास में कुवृक्षों के फूटने और टूटने से करोड़ों कांटों से व्याप्त कदलीवृक्ष (केले का पेड़) कष्ट उठाता है ॥१९॥ विद्या विवेको विनयो विशुद्धिः सिद्धान्तवाल्लभ्यमुदारता च । असद्ग्रहाद्यान्ति विनाशमेते, गुणास्तृणानीव कणाद्दवाग्नेः ॥२०॥
भावार्थ : असद्ग्रह से विद्या, विवेक, विशुद्धि, सिद्धान्त के प्रति प्रीति और उदारता आदि ये गुण उसी तरह नष्ट हो जाते हैं, जिस तरह दवाग्नि के कण से तृण जलकर नष्ट हो जाते हैं। जैसे दवाग्नि की एक चिनगारी से घास का ढेर जलकर साफ हो जाता है, वैसे ही कदाग्रह से आगमादि का अध्ययन (विद्या), कृत्याकृत्यविचार (विवेक), नम्रता (विनय), आहारादि की शुद्धि (विशुद्धि), आगमादि सिद्धान्त के प्रति प्रीति, उदारता, ये सब आत्महितकारी गुण समूल नष्ट हो जाते हैं । अतः कदाग्रह या कदाग्रही के सम्पर्क से दूर ही रहना चाहिए ॥२०॥ स्वार्थः प्रियो नो गुणवांस्तु कश्चिन्मूढेषु मैत्री न तु तत्ववित्सु । असद्ग्रहापादितविश्रमाणां स्थितिः किलासावधमाधमानाम् ॥२१॥
भावार्थ : कदाग्रही को अपना स्वार्थ (खुदगर्जी) प्रिय लगता है, गुणवान् प्रिय नहीं लगता । उसकी दोस्ती मूल् के
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अध्यात्मसार