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भावार्थ : अन्त में मोहराजा को उनके दोनों पुत्रोंद्वेषगजेन्द्र एवं रागकेसरी सहित धर्मराजा ने मार डाला ॥५९॥ ततः प्राप्तमहानन्दा धर्मभूपप्रसादतः । यथा कृतार्था जायन्ते साधवो व्यवहारिणः ॥६०॥
भावार्थ : उसके बाद धर्मराजा की कृपा से साधुरूप व्यवहारी अत्यन्त आनन्दित हुए और व्यवहारियों की तरह कृतार्थ होकर अपना व्यवहार करने लगे ॥६०॥ विचिन्तयेत्तथा सर्वं धर्मध्याननिविष्टधीः । ईदृगन्यदपि न्यस्तमर्थजातं यदागमे ॥६१॥
भावार्थ : धर्मध्यान में जिसकी बुद्धि तल्लीन है, उस मुनि को पूर्वोक्त प्रकार से समस्त चिन्तन (ध्यान) करना चाहिए और इसी तरह के और भी पदार्थसमूह पर, जिसका आगम में वर्णन हो, उसका भी ध्यान करना चाहिए ॥६१॥ मनसश्चेन्द्रियाणां च जयाद्यो निर्विकारधीः ।। धर्मध्यानस्य स ध्याता, शान्तो दान्तः प्रकीर्तितः ॥६२॥
भावार्थ : जो योगी मन और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने से निर्विकार बुद्धिवाला हो गया हो, उसी शान्त और दान्त मुनि को धर्मध्यान का ध्याता कहा गया है ॥६२॥ परैरपि यदिष्टं च स्थितप्रज्ञस्य लक्षणम् । घटते ह्यत्र तत्सर्वं, तथा चेदं व्यवस्थितम् ॥६३॥ २१०
अध्यात्मसार