________________
असद्ग्रहो यस्य गतो न नाशं, न दीयमानं श्रुतमस्य शस्यम् । न नाम वैकल्यकलंकितस्य प्रौढ़ा प्रदातुं घटते नृपश्रीः ॥१३॥
भावार्थ : जिस प्रकार अंगों के विकलतारूपी दोष से दूषित (अपाहिज), अथवा मन की व्याकुलता से दूषित व्यक्ति को प्रौढ़ राजलक्ष्मी नहीं दी (सौंपी) जाती; उसी प्रकार जिसका कदाग्रह नष्ट नहीं हुआ है, उसे भी शास्त्रज्ञान देना उचित नहीं है ॥१३॥ आमे घटे वारि यथा धृतं सद्धिनाशयेत् स्वं च घटं च सद्यः । असद्ग्रहग्रस्तमतेस्तथैव श्रुतात्प्रदत्तादुभयोर्विनाशः ॥१४॥
I
भावार्थ : कच्चे घड़े में पानी रखते ही जैसे अपना (पानी का) और घड़े का तत्काल नाश हो जाता है । वैसे ही जिसकी बुद्धि कदाग्रह से ग्रस्त हो, उसे शास्त्रज्ञान देने से शास्त्र और कदाग्रही दोनों का विनाश हो जाता है ॥१४॥ असद्ग्रहग्रस्तमतेः प्रदत्ते हितोपदेशं खलु यो विमूढः । शुनीशरीरे स महोपकारी कस्तूरिकालेपनमादधाति ॥ १५ ॥
भावार्थ : जिसकी बुद्धि दुराग्रह से पीड़ित है, उसे जो भोला बनकर हितोपदेश दे देता है, समझना चाहिए वह मूढ़पुरुष महान् उपकारी बनकर कुत्ती के शरीर पर मानो कस्तूरी का लेप करता है ॥१५॥
कष्टेन लब्धं विशदागमार्थं ददाति योऽसद्ग्रहदूषिताय । स खिद्यते यत्नशतोपनीतं बीजं वपन्नूषरभूमिदेशे ॥ १६ ॥
१६४
अध्यात्मसार