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तथाभव्यतयाक्षेपाद् गुणा न च न हेतवः । अन्योऽन्यसहकारित्वाद् दण्डचक्रभ्रमादिवत् ॥८७॥
भावार्थ : सिद्धान्तियों द्वारा समाधान-तथाभव्यता के आक्षेप से वीर्योत्साहादि गुण मोक्ष के हेतु नहीं हैं, ऐसा हमारा विचार (मत) नहीं है । परन्तु घट के बनने में डंडा, चाक, डोरी और भ्रमण वगैरह जैसे अन्योन्य सहकारी कारण हैं, वैसे ही मोक्षसाधना में तथाभव्यत्व आदि एक दूसरे के सहकारी कारण हैं ॥८७॥ ज्ञानदर्शनचारित्राण्युपायास्तद्भवक्षये । एतन्निषेधकं वाक्यं त्याज्यं मिथ्यात्ववृद्धिकृत् ॥८८॥ ___भावार्थ : इसलिए संसार का नाश करने के लिए ज्ञान, दर्शन और चारित्र उपाय हैं । अतः इसका निषेध करने वाला वाक्य मिथ्यात्ववर्द्धक होने से त्याज्य है ॥८८।। मिथ्यात्वस्य पदान्येतान्युत्सृज्योत्तमधीधनः । भावयेत् प्रातिलोम्येन सम्यक्त्वस्य पदानि षट् ॥८९॥
भावार्थ : अतः उत्तम बुद्धि का धनी पुरुष मिथ्यात्व के इन स्थानों को छोड़कर उनके विपरीत सम्यक्त्व के ६ पदों (स्थानों) पर विचार करे । इन भव्य भावनाओं से अपने को ओतप्रोत करें ॥८९॥
॥ इति मिथ्यात्वत्यागाधिकारः ॥
अधिकार तेरहवां
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