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अधिकार चौदहवां
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[ कदाग्रहत्याग: ] मिथ्यात्वदावानलनीरवाहमसद्ग्रहत्यागमुदाहरन्ति अतो रतिस्तत्र बुधैर्विधेया विशुद्धभावैः श्रुतसारवद्भिः ॥ १ ॥ भावार्थ : असद्ग्रह ( मिथ्या आग्रह ) को मिथ्यात्त्वरूपी दावाग्नि के लिए मेघ के समान कहा है, इसलिए शुद्धाशयवाले शास्त्र के सारज्ञ पण्डितों को इस कदाग्रहत्याग करने में रुचि रखनी चाहिए ||१||
असद्ग्रहाग्निज्वलितं यदन्तः क्व तत्र तत्त्वव्यवसायवल्ली । प्रशान्तपुष्पाणि हितोपदेश - फलानि चान्यत्र गवेषयन्तु ॥२॥
भावार्थ : जिनका चित असद्ग्रहरूपी आग से जला हुआ है, वहाँ तत्त्वनिश्चयरूपी बेल कहाँ ठहर सकती है? अतः शान्तिरूपी फूलों एवं हितोपदेशरूपी फलों की तलाश कहीं और जगह जाकर कीजिए ॥२॥
अधीत्य किञ्चिच्च निशम्य किञ्चिदसद्ग्रहाद् पण्डितमानिनो ये । मुखं सुखं चुम्बितमस्तु वाचो, लीलारहस्यं तु न तैर्जगाहे ॥ ३ ॥ भावार्थ : कुछ पढ़कर, कुछ शास्त्रादि सुनकर जो कदाग्रहवश अपने को पण्डित मानते हों, उन्होंने चाहे सुखपूर्वक
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अध्यात्मसार