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मद्यांगेभ्यो मदव्यक्ति: प्रत्येकमसती यथा । मिलितेभ्यो हि भूतेभ्यो ज्ञानव्यक्तिस्तथा मता ॥११॥
भावार्थ : जैसे मद्य के अंगों में से प्रत्येक अंग में मद की अभिव्यक्ति नहीं होती, (सभी अंग मिलने पर ही स्पष्ट अभिव्यक्ति होती है), वैसे ही पंचमहाभूत एकत्र मिलने पर ज्ञान की स्पष्ट अभिव्यक्ति होती मानी गई है ॥ ११ ॥ राजरंकादिवैचित्र्यमपि नात्मबलाहितम् । स्वाभाविकस्य भेदस्य ग्रावादिष्वपि दर्शनात् ॥१२॥
भावार्थ : राजा, रंक आदि विभिन्नता भी आत्मा के बल पर उत्पन्न हुई नहीं है; क्योंकि ऐसा स्वाभाविक भेद तो पाषाण आदि में भी दिखाई देता है ॥ १२ ॥
वाक्यैर्न गम्यते चात्मा परस्परविरोधिभिः । दृष्टवान्न च कोऽप्येतं, प्रमाणं यद्वचो भवेत् ॥१३॥
भावार्थ : आगमवाक्यों से भी आत्मा नहीं मानी जा सकती, क्योंकि वे परस्पर विरोधी हैं तथा किसी ने आत्मा को प्रत्यक्ष देखा भी नहीं कि उसका वचन प्रमाणभूत माना जाय? ॥१३॥
आत्मानं परलोकं च क्रियां च विविधां वदन् । भोगेभ्यो भ्रंशयत्युच्चैर्लोकचित्तं प्रतारकः ॥१४॥
अधिकार तेरहवां
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