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नास्ति निर्वाणमित्याहुरात्मनः केऽप्यबन्धतः । प्राक् पश्चाद् युगपद्वापि कर्मबन्धाव्यवस्थितेः ॥६३॥
भावार्थ : कई निर्मोक्षवादी कहते हैं-'निर्वाण है ही नहीं', क्योंकि आत्मा के बन्ध नहीं होने से मोक्ष भी नहीं होता । कारण कि पहले, पीछे, अथवा साथ-साथ आत्मा के कर्मबन्धन की अव्यवस्था है ॥६३।। अनादिर्यदि सम्बन्ध इष्यते जीवकर्मणोः । तदानन्त्यान्न मोक्षः स्यात्तदात्माकाशयोगवत् ॥६४॥
भावार्थ : यदि आप जीव और कर्म का सम्बन्ध अनादि कहेंगे तो आत्मा और आकाश के सम्बन्ध की तरह जीव और कर्म का सम्बन्ध भी अनन्त हो जाएगा और उससे मोक्ष सिद्ध नहीं होगा ॥६४॥ तदेतदत्यसम्बद्धं यन्मिथो हेतुकार्ययोः । सन्तानानादिता बीजांकुरवद् देहकर्मणोः ॥६५॥
भावार्थ : किन्तु यह (अमोक्षवादियों का) मत अत्यन्त असंगत है। क्योंकि परस्पर कारण और कार्यरूप देह और कर्म का बीज और अंकुर की तरह परस्पर प्रवाहरूप (परम्परा) से परस्पर अनादित्व है ॥६५॥ कर्ता कर्मान्वितो देहे जीवः कर्मणि देहयुक् । क्रियाफलोपभुक् कुम्भे दण्डान्वितकुलालवत् ॥६६॥ १५२
अध्यात्मसार