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___ भावार्थ : निश्चय ही यह बौद्धदर्शन मिथ्यात्व (असत्य) की वृद्धि करने वाला है क्योंकि आत्मा को क्षणिक मानने पर किये हुए कर्मों का नाश और नहीं किये हुए कर्मों की प्राप्तिरूप दोष आते हैं ॥३४॥ एकद्रव्यान्वयाभावाद् वासना-संक्रमश्च न । पौर्वापर्यं हिं भावानां सर्वत्रातिप्रसक्तिमत् ॥३५॥
भावार्थ : एक आत्मद्रव्य का अन्वय न होने से वासना का संक्रम नहीं होगा। क्योंकि पदार्थों का पौर्वापर्य सदा सर्वत्र अतिप्रसक्ति वाला है ॥३५॥ कुर्वद्रूपविशेषे च न प्रवृत्तिर्न वाऽनुमा । अनिश्चयान्न वाऽध्यक्षं तथा चोदयतो जगौ ॥३६॥
भावार्थ : कुर्वद्रूप विशेष वाली आत्मा मानने से शुभाशुभ प्रवृत्ति नहीं होगी, अनुमान नहीं होगा और निश्चय न होने से प्रत्यक्षप्रमाण भी नहीं रहेगा । इस सम्बन्ध में क्षणिकवादी को प्रेरित करते हुए सिद्धान्ती ने नीचे लिखे अनुसार कहा है ॥३६॥ न वैजात्यं विना तत्स्यान्न तस्मिन्ननुमा भवेत् । विना तेन न तत्सिद्धिर्नाध्यक्ष निश्चयं विना ॥३७॥
भावार्थ : उस कुर्वद्र पविशेष-युक्त जीव में वैजात्य (विजातिरूप) विशेषण के बिना उसे पूर्वानुभूत का स्मरण नहीं
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अध्यात्मसार