________________
शरीरस्यैव चात्मत्वे नानुभूतस्मृतिर्भवेत् । बालत्वादिदशाभेदात् तस्यैकस्यानवस्थितेः ॥ १८॥
भावार्थ : शरीर को ही आत्मा मानने पर पूर्व अनुभूत की स्मृति नहीं होगी, क्योंकि बाल्य आदि अवस्थाओं के भेद के कारण वह अकेले शरीर की अनवस्थिति=अस्थिरता है ॥१८॥
नात्माङ्गं विगमेऽप्यस्य तल्लब्धानुस्मृतिर्यतः । व्यये गृहगवाक्षस्य तल्लब्धार्थाधिगन्तृवत् ॥१९॥
भावार्थ : तथा शरीर को आत्मा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जिस अंग का नाश हो जाता है, उसके बाद उस अंग से पहले जो कुछ उपलब्ध (जाना) हुआ था, उस पदार्थ का स्मरण हो सकता है। जैसे घर का झरोखा गिर जाने पर उस गवाक्ष (झरोखे) से प्राप्त हुई चीजों को जानने वाले मनुष्य को उनकी स्मृति होती है, वैसे ही उस अंग से पहले जो कुछ जाना - सुना था, उसकी स्मृति शरीर को होनी चाहिए; पर होती नहीं है ॥१९॥
न दोषः कारणत्कार्ये वासनासंक्रमाच्च न । भ्रूणस्य स्मरणापत्तेरम्बानुभवसंक्रमात् ॥२०॥
भावार्थ : कारण से और कार्य में वासना के संक्रमण होने से स्मृति होने में कोई दोष नही है । क्योंकि माता के
T
अधिकार तेरहवां
१३९