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युक्त परम ज्योतिर्मय जो आत्मस्वरूप है, उसका अनुभव करता है ॥२१॥ गलितदुष्टविकल्पपरम्परं धृतविशुद्धिमनो भवतीदृशम् । धृतिमुपेत्य ततश्च महामतिः समधिगच्छति शुभ्रयशःश्रियम् ॥२२॥
भावार्थ : जिसके मन ने विशुद्धि धारण कर ली है, उसके मन में दुष्ट विकल्पों की परम्परा समाप्त हो जाती है, उसके बाद वह महाबुद्धिमान योगी धैर्य धारण करके उज्ज्वल यशोलक्ष्मी (मोक्षलक्ष्मी) प्राप्त कर लेता है ॥२२॥ इति श्रीमहोपाध्याय-यशोविजयगणि-विरचिते ।
अध्यात्मसार-प्रकरणे तृतीयः प्रबन्धः ॥३॥
अधिकार ग्यारहवां
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