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शुद्धता
मतों की एकवाक्यता नहीं होती । तथा अहिंसा की (विराधना के परिहार) का उपाय और ज्ञान भी उन-उन (अन्य) शास्त्रों से नहीं होता ॥ ११ ॥ यथाऽहिंसादयः पञ्च व्रतधर्मयमादिभिः । पदैः कुशलधर्माद्यैः कथ्यन्ते स्व - स्वदर्शने ॥ १२ ॥
भावार्थ : अन्यदर्शन वाले अपने - अपने दर्शन में अहिंसादि पाँचों को व्रत, धर्म, यम आदि शब्दों से तथा कुशलधर्म आदि शब्दों से जिस-जिस रूप में पुकारते हैं, उसे आगे बताते हैं ॥१२॥
प्राहुर्भागवतास्तत्र व्रतोपव्रतपञ्चकम् ।
यमांश्च नियमान् पाशुपता धर्मान् दशाऽभ्यधुः ॥ १३ ॥
भावार्थ : इन सभी दर्शनों में भागवतमत वाले पाँच व्रत और पाँच उपव्रत, यों दस मानते हैं, तथा पाशुपतमत वाले पाँच यम और पाँच नियम, इस प्रकार दस धर्म को मानते हैं ॥१३॥
अहिंसा सत्यवचनमस्तैन्यं चाप्यकल्पना । ब्रह्मचर्यं तथाऽक्रोधो ह्यार्जवं शौचमेव च ॥१४॥ संतोष गुरुशुश्रूषा इत्येते दश कीर्तिताः । निगद्यन्ते यमाः सांख्यैरपि व्यासानुसारिभिः ॥१५॥
भावार्थ : आहिंसा, सत्यवचन, अचौर्य, अकल्पना (निष्परिग्रह) और ब्रह्मचर्य तथा अक्रोध, आर्जव, शौच, अधिकार बारहवाँ
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