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सन्तोष एवं गुरुशुश्रूषा, ये दस कहे गए हैं । इनमें से पहले के पाँचों को व्यासमार्गानुगामी व सांख्यमत वाले यम के रूप में मानते हैं ॥१४- १५॥
अहिंसासत्यमस्तैन्यं ब्रह्मचर्यं तुरीयकम् । पंचमो व्यवहारश्चेत्येते पंच यमाः स्मृताः ॥१६॥
भावार्थ : अहिंसा, सत्य, अस्तेय, चौथा ब्रह्मचर्य और पाँचवाँ व्यवहार (परिग्रहत्याग), ये पाँच यम कहे गए हैं ||१६|| अक्रोधो गुरुशुश्रूषा शौचमाहारलाघवम् । अप्रमादश्च पञ्चैते नियमाः परिकीर्तिताः ॥१७॥
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भावार्थ : अक्रोध (क्षमा), गुरुशुश्रुषा, शौच, (शरीरादि की पवित्रता) आहार की लघुता (अल्पाहार) तथा अप्रमाद (अकार्य में प्रवृत्ति, कार्य से निवृत्तिरूप प्रमाद अथवा असावधानीरूप प्रमाद का त्याग) ये पाँचों नियम कहलाते हैं ॥१७॥ बौद्धैः कुशलधर्माश्च दशेष्यन्ते यदुच्यते । हिंसाऽस्तेयाऽन्यथाकामं पैशुन्यं परुषानृतम् ॥१८॥ संभिन्नालापव्यापादमभिध्या - दृग्विपर्ययम् । पापकर्मेति दशधा कायवाङ्-मानसैस्त्यजेत् ॥१९॥
भावार्थ : बौद्ध दश कुशलधर्मों को मानते हैं । जैसा कि वे कहते हैं - हिंसा, अस्तेय, अन्यथा काम (दुष्ट परिणाम से परस्त्री के साथ मैथुन - सेवन करना) पैशुन्य ( चुगली), परुषानृत (मन-वचन द्वारा कठोर और असत्य बोलना ),
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अध्यात्मसार