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शम-संवेग-निर्वेदानुकम्पाभिः परिष्कृतम् । दधतामेतदच्छिन्नं, सम्यक्त्वं स्थिरतां व्रजेत् ॥५८॥
भावार्थ : शम, संवेग, निर्वेद और अनुकम्पा से सुशोभित इस आस्तिक्य को सतत् धारण करने वाले भव्यजीवों का सम्यक्त्व स्थिरता को प्राप्त होता है, अविचल हो जाता है ॥५८॥
॥ इति सम्यक्त्वाधिकारः ॥
अधिकार बारहवाँ