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अधिकार तेरहवां
[मिथ्यात्व-त्याग] मिथ्यात्वत्यागतः शुद्धं सम्यक्त्वं जायतेऽङ्गिनाम् । अतस्तत्परिहाराय यतितव्यं महात्मना ॥१॥
भावार्थ : मिथ्यात्व का त्याग करने से प्राणियों को शुद्ध सम्यक्त्व प्राप्त होता है, इसलिए उस मिथ्यात्व के त्याग के लिए महात्मा को प्रयत्न करना चाहिए ॥१॥ नास्ति नित्यो, न कर्ता च, न भोक्तात्मा, न निवृतः । तदुपायश्च नेत्याहुर्मिथ्यात्वस्य पदानि षट् ॥२॥
भावार्थ : आत्मा नहीं है, आत्मा एकान्त नित्य है, आत्मा कर्ता नहीं है, भोक्ता नहीं है, मुक्त नहीं है, मुक्ति का उपाय कोई भी नहीं है, इस प्रकार मिथ्यात्व के ६ पदस्थानक कहे गए हैं ॥२॥ एतैर्यस्माद् भवेच्छुद्ध-व्यवहारविलंघनम् । अयमेव च मिथ्यात्व-ध्वंसी सदुपदेशतः ॥३॥
भावार्थ : जिन पूर्वोक्त ६ स्थानकों से शुद्ध व्यवहार का उल्लंघन होता है, वही व्यवहार शुद्ध उपदेश के कारण मिथ्यात्व को नष्ट करने वाला होता है ॥३॥
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अध्यात्मसार