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अनन्तरक्षणोत्पादे बुद्धलुब्धकयोस्तुला ।
नैवं तद्विरतिः क्वापि ततः शास्त्राद्यसंगतिः ॥३६॥ भावार्थ : अनन्तर क्षण में उत्पत्ति मानने पर बुद्ध और शिकारी दोनों की समानता दिखाई देगी । और ऐसा होने से कहीं भी विरति नहीं होगी और इससे शास्त्रादि भी असंगत होंगे ||३६||
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घटन्ते न विनाऽहिंसा, सत्यादीन्यपि तत्त्वतः । एतस्या वृत्तिभूतानि तानि यद्भगवान् जगौ ॥३७॥
भावार्थ : अहिंसा के बिना सत्य आदि भी तत्त्वतः घटित नहीं होते; क्योंकि सत्य आदि तो अहिंसा की रक्षा के लिए बाड़रूप हैं, इस प्रकार जिनेश्वर भगवान् ने कहा है ||३७|| मौनीन्द्रे च प्रवचने युज्यते सर्वमेव हि । नित्यानित्ये स्फुटं देहाद् भिन्नाभिन्ने तथात्मनि ॥ ३८ ॥
भावार्थ : जिनेन्द्र भगवान् के प्रवचन में आत्मा नित्य तथा अनित्य है, देह से भिन्न भी है, अभिन्न भी है, इसलिए इसमें अहिंसा आदि सब स्पष्टरूप से घटित हो जाते हैं ||३८|| ॥३८॥ आत्मा द्रव्यार्थतो नित्यः पर्यायार्थाद्विनश्वरः । हिनस्ति, हिंस्यते तत्तत्फलान्यप्यधिगच्छति ॥३९॥
भावार्थ : आत्मा द्रव्यार्थदृष्टि से नित्य है और पर्यायार्थदृष्टि से विनश्वर (अनित्य ) है । इस कारण वह दूसरों
अधिकार बारहवाँ
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