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अधिकार सातवाँ
[ वैराग्य-विषय ] विषयेषु गुणेषु च द्विधा, भुवि वैराग्यमिदं प्रवर्तते । अपरं प्रथमं प्रकीर्तितं परमध्यात्मबुधैर्द्वितीयकम् ॥१॥
भावार्थ : इस पृथ्वी पर दो प्रकार के वैराग्य प्रचलित हैं—एक तो विषयों के सम्बन्ध में और दूसरा गुणों के सम्बन्ध में | अध्यात्म के विद्वानों ने इन दोनों में से प्रथम वैराग्य को अपर और दूसरे को पर (प्रधान) कहा है ॥१॥ विषया उपलम्भगोचरा अपि चानुश्रविका विकारिणः । न भवन्ति विरक्तचेतसां विषधारेव सुधासु मज्जताम् ॥२॥
भावार्थ : शास्त्रों आदि से या अनुभवी पुरुषों से कर्णपरम्परा से सुने हुए विषय के उपलब्ध ( प्राप्त) होने पर भी विरक्तचित्त साधकों के लिए उसी तरह विकार पैदा करने वाले नहीं होते, जिस तरह अमृत में निमग्न पुरुष को विषधारा नहीं होती ॥२॥
सुविशालरसालमंजरी - विचरत्कोकिलकाकलीभरैः । किमु माद्यति योगिनां मनो निभृतानाहतनादसादरम् ॥३॥ भावार्थ : शान्त और अनाहत ॐ कार आदि ध्वनि में मस्त (आदर वाले) योगियों का मन विशाल आम्रवृक्ष की
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अध्यात्मसार