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अधिकार आठवां
[ममत्व-त्याग] निर्ममस्यैव वैराग्यं स्थिरत्वमवगाहते । परित्यज्येत्ततः प्राज्ञो ममतामत्यनर्थदाम् ॥१॥
भावार्थ : ममतारहित पुरुष का वैराग्य ही स्थिरता प्राप्त करता है; इसलिए बुद्धिशाली साधक को अत्यन्त अनर्थकारिणी ममता का त्याग करना चाहिए ॥१॥ विषयैः किं परित्यक्तैर्जागर्ति ममता यदि । त्यागात् कञ्चकमात्रस्य भुजगो न हि निर्विषः ॥२॥
___ भावार्थ : जिसके हृदय में ममता जागृत है, उसके द्वारा विषयों का त्याग कर देने मात्र से क्या लाभ? कंचुकी का त्याग कर देने से ही साप निर्विष नहीं बन जाता ॥२॥ कष्टेन हि गुणग्रामं प्रगुणीकुरुते मुनिः । ममताराक्षसी सर्वं भक्षयत्येकहेलया ॥३॥
भावार्थ : गुणों के जिस पुंज को मुनि बड़े कष्ट से उपार्जन करता है, उन सब गुणों को ममताराक्षसी एक ही कौर में चट कर जाती है।
__चिरकाल तक तप, व्रत, संयम, नियम, इन्द्रियदमन आदि करके बड़े परिश्रम से जिन गुणों से संयमी मुनि अपनी ७६
___ अध्यात्मसार