________________
कर दिया है, या जगाया गया है । यह तत्त्व योगविंशिका के ज्ञाताओं के लिए विचारणीय है ॥ ३८ ॥
त्रिधा तत्सदनुष्ठानमादेयं शुद्धचेतसा । ज्ञात्वा समयसद्भावं लोकसंज्ञां विहाय च ॥३९॥
भावार्थ : अत: शुद्धचित्त वाले साधक को शास्त्र के परमार्थ को जानकर लोकसंज्ञा को छोड़कर शुद्ध चित्त से मनवचन काया से शुद्ध क्रिया करनी चाहिए ॥ ३९॥ ॥ इति सदनुष्ठानाधिकारः ॥
अधिकार दसवाँ
१०७