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अधिकार नौवाँ
[समता] त्यक्तायां ममतायां च समता प्रथते स्वतः । स्फटिके गलितोपाधौ यथा निर्मलतागुणः ॥१॥
__ भावार्थ : जैसे उपाधिरहित हुए स्फटिक (बिल्लौरी काँच) में निर्मलता के गुण स्वतः प्रगट हो जाते हैं, वैसे ही ममता का त्याग होने पर समता स्वतः प्रगट होती है ॥१॥ प्रियाप्रियत्वयोर्यार्थैर्व्यवहारस्य कल्पना । निश्चयात्तद्व्युदासेन स्तमित्यं समतोच्यते ॥२॥
भावार्थ : पदार्थो को लेकर उनमें जो प्रियत्व या अप्रियत्व के व्यवहार की कल्पना है, उसका निश्चय (परमार्थ) से नाश करके निश्चल=स्थिर हो जाना ही समता कहलाती है ॥२॥ तेष्वेव द्विषतः पुंसस्तेष्वेवार्थेषु रज्यतः । निश्चयात् किञ्चिदिष्टं वानिष्टं वा नैव विद्यते ॥३॥
भावार्थ : पुरुष उन्हीं पदार्थों पर द्वेष करता है उन्हीं के प्रति राग (मोह) करने लगता है । निश्चयदृष्टि से तो कोई भी पदार्थ न तो इष्ट है, न अनिष्ट । व्यवहार से कल्पना करने वाले ८६
अध्यात्मसार