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करने वाले किसी विरले पुरुष की ही सकामनिर्जरा होती है, अन्य बहुत-से पुरुषों की नहीं होती । इसलिए यह त्याज्य है ॥१६॥ सदनुष्ठानरागेण तद्धेतुर्मार्गगामिनाम् । एतच्च चरमावर्तेऽनाभोगादेविना भवेत् ॥१७॥
भावार्थ : मार्गानुसारी पुरुषों को सदनुष्ठान के प्रति अनुराग से तद्धेतु-अनुष्ठान होता है। यह अनुष्ठान अनाभोगादि के बिना चरमावर्त के धनी (जिसके एक-पुद्गल-परावर्त संसार बाकी रहता है, उस जीव) को प्राप्त होता है ॥१७॥ धर्मयौवनकालोऽयं भवबालदशाऽपरा । अत्र स्यात् सत्क्रियारागोऽन्यत्र चासत्क्रियादरः ॥१८॥
भावार्थ : यह चरम पुद्गलपरावर्तकाल धर्म की जवानी का समय है, इसके अतिरिक्त समय संसार की बाल्यावस्था है। इस चरम-पुद्गलपरावर्तकाल में सत्क्रिया (धर्मक्रिया) के प्रति अनुराग होता है, जबकि उससे पहले के काल में असत्क्रिया के प्रति आदर होता है ॥१८॥ भोगरागाद्यथा यूनो बालक्रीड़ाखिला हिये । धर्मे यूनस्तथा धर्मरागेणासत्क्रिया हिये ॥१९॥
भावार्थ : जैसे युवक को भोग के राग (आसक्ति) के कारण बाल्यक्रीड़ा लज्जाकारक लगती है, वैसे ही धर्म के अधिकार दसवाँ
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